गंग सर्वज्ञ के पीछे गंगा, चौला का हाथ पकड़े हुई आई। चौला का नवल गात, नवविकसित यौवन, लज्जावनत कमल–मुख, मधुर कौमार्य और नवीन केले की सी कान्ति देखकर जनता मूढ़-मुग्ध रह गई। अकस्मात् हर्षातिरेक से लोग चिल्ला उठे, 'जय देव, जय जय देव!'
परन्तु तुरन्त ही गर्भगृह से और एक व्यक्ति बाहर आया। उन्हें देखते ही भीड़ में भूचाल-सा आ गया, लोग हर्षोल्लास से चिल्ला उठे—'जय गुर्जरेश! जय चौलुक्यराज भीमदेव!'
युवराज भीमदेव एक हाथ तलवार की मूठ पर रखे, धीर-गम्भीर गति से चारों ओर देखते अपने साथी से धीरे-धीरे बातें करते आ रहे थे।
पहले सर्वज्ञ ने हाथ उठाकर सबको आशीर्वाद दिया। सब कोई चुपचाप गर्भगृह के द्वार पर देवता के सम्मुख खड़े हो गए। सर्वज्ञ ने एक बार भूमि पर प्रणिपात कर देवता को नमन किया, फिर एक शिष्य ने आरती उनके हाथ में दी और वे आरती करने लगे। इसी प्रकार गंग सर्वज्ञ आज सत्ताईस वर्ष से, अखण्ड रूप से बिना एक दिन नागा किए, प्रतिदिन दोनों समय आरती करते आ रहे हैं। हज़ारों घण्टाओं का स्वर, महाघण्ट का रव और दुन्दुभी की मेघ-गर्जना सब मिल कर ऐसा प्रतीत होता था जैसे देवाधिदेव अभी तांडव नृत्य कर रहे हैं और पृथ्वी पर भूचाल आ गया हो।
आरती सम्पूर्ण होने पर 'जय देव, जग जय देव, जय सोमनाथ, जय ज्योतिर्लिङ्ग' का सर्वज्ञ ने उच्चारण किया, जिसका सब लोगों ने अनुकरण किया। वह जयघोष उत्तुङ्ग वायु की लहरों पर चढ़कर कोट, परकोट, समुद्र-तट, नगर और नगरकोट तक प्रतिध्वनित और परिवर्द्धित होकर प्रभास पट्टन के वातावरण में गूँज उठा।
यात्रियों ने आरती की आस ली।
सर्वज्ञ ने कहा, "अब नृत्य हो!"
सर्वज्ञ बाघम्बर पर बैठे। अन्य अतिथि भी उचित आसनों पर बैठे।
सब लोग यथास्थान बैठे। मृदङ्ग और वाद्य बजने लगे।
वातावरण में स्वर-ताल की तरंगें उठ चलीं।
गंगा ने स्तवन प्रारम्भ किया, और उसके साथ छह नर्तकियों ने नृत्य प्रारम्भ किया। क्षणभर ही में गंगा की कला मूर्तिमती हो उठी। माधुर्य की नदी उसके कण्ठ से बह चली। उसमें भक्तिभाव और विलास तैरने लगा। उसकी दृष्टि गंग सर्वज्ञ के गम्भीर मुख पर थी, और सर्वज्ञ की दृष्टि पृथ्वी पर। वे निश्चल, अडिग, जड़वत् बैठे थे। संगीत के वे परम पारदर्शी थे।
संगीत रुका, और गंग सर्वज्ञ ने एक बार आँख उठाकर गंगा की प्यासी चितवन को देखा। फिर उनकी दृष्टि चौला की ओर गई। उन्होंने मृदु स्वर से पुकारा, "चौला!"
चौला का हृदय धड़कने लगा। उसने सर्वज्ञ की ओर देखा। सर्वज्ञ ने उँगली से संकेत करके देवता को दिखाया। चौला ने उठकर प्रथम देवता को साष्टांग दण्डवत् और फिर गंग सर्वज्ञ को प्रणिपात किया और वह नृत्य करने को खड़ी हुई। वातावरण नीरव हो गया। सहस्रों दृष्टि उसी पर थीं, केवल गंग सर्वज्ञ पृथ्वी पर आँखें जमाए थे।
गंगा ने उसका ऊपर का आवरण हटाया। मण्डप के उन रत्न-दीपों के प्रकाश में वह