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अमीर अपने प्राण बचाकर खाई के उस पार पहुँचा। उसकी सारी सेना छिन्न-भिन्न हो गई। इधर जो योद्धा पहुँच चुके थे, सब काट डाले गए। जो प्राण-भय से जल में कूदे, उनमें अधिकांश डूब गए। कुछ तलवार के घाट उतार दिए गए, कुछ किसी तरह मार खाकर उस पार पहुँचे। राजपूतों ने पुल में आग लगा दी। अमीर रणक्षेत्र से एक कोस पीछे हट गया। अभी सूर्य मध्याह्न तप रहा था। मन्दिर में विजय-दुन्दुभी बज उठी-भेरी, शंख, घड़ियाल से दिशाएँ गूंजने लगीं। सूर्य की उज्ज्वल धूप में महालय के सुनहरी कंगूरों को अमीर हताश भाव से खड़ा देख रहा था और उसके सैनिक अस्त-व्यस्त भाग रहे थे। आधे दिन के इस महा घनघोर युद्ध में यद्यपि हिन्दुओं की भी बहुत हानि हुई थी, परन्तु अमीर की तो सारी सेना की व्यवस्था ही बिगड़ गई थी। सब से बड़ी बात तो यह थी उसकी समूची ही गज-सैन्य का सत्यानाश हो गया था। उसके पास अब सौ हाथी भी शेष नहीं बचे थै-जो घायल न हों। कछुओं ने सबकी सूंड़े काट डाली भीं, पैरों में घहरे घाव कर दिए थे। अमीर शोक और निराशा में अभिभूत हो घोड़े से उतर वहीं भूमि में दोनों हाथों से मुँह ढांपकर बैठ गया। उसने शोक-संतप्त होकर कहा, “या अल्लाह, ऐसा दिन तो कभी ज़िन्दगी में देखा ही न था।” मन्दिर में नक्कारे बज रहे थे। प्रसादी की तैयारियाँ हो रही थीं। ज्यों ही घायल और थकित भीमदेव अपने कक्ष के द्वार पर पहुँचे, उन्होंने देखा-गंग सर्वज्ञ शान्त मुद्रा में खड़े हैं। भीमदेव ने उन्हें साष्टाङ्ग दण्डवत् किया। सर्वज्ञ ने कहा, “हे धर्म- रक्षक, तेरी सदा जय हो!"