घाव खाकर चिंघाड़ते हुए सूंड़ उठा-उठाकर पीछे की ओर अपनी ही सेना को कुचलते हुए भागे। अमीर इस भगदड़ का कुछ भी अभिप्राय न समझ सका। उसने भागते सैनिकों को बहुत उत्साहित किया, पर हाथी भाग रहे थे, सैनिक नहीं, अत: भगदड़ बढ़ती ही गई। अमीर ने क्रोध में आकर अपना घोड़ा खाई में छोड़ दिया। यह देख ‘अल्लाहो-अकबर' का वज्र-नाद करके दस हज़ार बलूची सवार भी खाई में पैठ गए। वे छातियों की दीवार बनाकर आगे बढ़ने लगे। उनकी सुरक्षा में दो हज़ार कारीगर अपने औज़ारों को लेकर बढ़ चले। हाथियों पर रस्सी और लकड़ी के तख्तों से बना पुल था। खाई के उस ओर पुल खूटों से जमा दिया गया था अब अमीर की खास तलवार राह बनाती दस हज़ार तलवारों की छत्र-छाया में खाई पर पुल को फैला रही थी। बालुकाराय ने यह देख, अधीर होकर अपनी समूची गजसैन्य को मुख्य द्वार पर फैला दिया। और वे अपने चुने हुए तीन सहस्त्र सोरठी अश्वारोहियों को ले पानी में पैठ गए। खाई में घनघोर युद्ध होने लगा। हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों की लाशें पानी पर तैरने और समुद्र की ओर बहने लगीं। लाशों को पैरों से रूंदते हुए अमीर की सेना खाई पर पुल को फैलाती आगे बढ़ी। नीचे तलवार के हाथ चल रहे थे ऊपर बाण-वर्षा हो रही थी। महाराज भीमदेव ने युद्ध की गतिविधि को देखकर सैनिकों को बाण के स्थान पर पत्थर बरसाने का आदेश दिया। उधर मुख्य द्वार को पत्थरों से भरवा देने का प्रबन्ध किया। चबूतरों, मन्दिरों और मकानों से बड़े-बड़े पत्थर उखाड़ कर मुख्य द्वार को पत्थरों से ऊपर तक पाट दिया गया। परन्तु अमीर की गति में बाधा नहीं पहुँची। वह अपने दुर्धर्ष बलूची सरदारों को लिए बढ़ता ही चला आ रहा था। और अब वह पुल खाई के इस पार तक आ पहुँचा था। महाराज भीमदेव ने यह विपत्ति देखी। वे फुर्ती से कोट से उतरकर गज-सैन्य में घुस गए। उन्होंने चुपचाप कुछ मस्त हाथी ले पीछे हटकर पाश्र्व से खाई में प्रवेश किया। उन्हें घेरकर लाट योद्धा जल में पैठे। महाराज भीमदेव बिना बाधा के खाई के मध्य भाग में पहुँच गए। इस बीच अमीर के बहुत से योद्धा इस पार पहुँच जल से बाहर आ तलवारों की छाया में पुल को जंजीरों से बांधने लगे। भय और आशंका की लहर फैल गई। इसी समय महाराज के मस्त हाथियों ने बीच धार में पुल को टक्कर दी। पुल एक बार हिला। महावतों ने वेग से हाथियों को हूला। मत्त हाथी चिंघाड़ते हुए पुल को धकेलने लगे। अमीर यह देख घबराकर अपनी बलूची सेना ले उधर को पलटा। बालुकाराय ने भी यह देखकर अपने कच्छी योद्धाओं को महाराज के चारों ओर फैला दिया। इधर अमीर के सैनिक मुख्य द्वार पर झटपट पुल को जंजीरों से बांध देने में प्राण खो रहे थे। सौ-सौ, हज़ार-हज़ार, बलूची सैनिक लाशों को रौंदते हुए जल से बाहर आ रहे थे। उधर जल के मध्य भाग में अमीर तड़प कर जी-जान से महाराज के हाथियों पर पिल रहा था। बालुकाराय के कच्छी योद्धा बेढब तलवार फेंक रहे थे। खाई के इस पार टिड्डी दल के समान बर्बर पठान और तुर्क पुल के सहारे-सहारे बढ़े चले आ रहे थे। ये दोनों ही पक्षों के लिए शंका और सन्देह के क्षण थे। इसी समय महावतों ने हाथियों को एक साथ हूल दिया। तलवारों और भालों की चोट से वे बौखला उठे, उनकी सम्मिलित टक्कर को पुल न झेल सका। वह आखिर टूट गया। पुल के सहारे हज़ारों तुर्क-सैनिक सवार जल में डूबने-उतराने लगे। राजपूतों ने हर्षनाद किया, 'हर-हर महादेव!' और चारों ओर से घेर कर मार करनी प्रारम्भ की। बड़ी ही कठिनाई से
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