दूसरा दिन सूर्योदय से पूर्व ही अमीर की सेना में नक्कारे बज उठे। नक्कारों की गड़गड़ाहट से हड़बड़ा कर राजपूत योद्धा भी सन्नद्ध होकर अपने-अपने मोर्चों पर जा जमे। सोरठी सरदार और मुकुटधारी राजा लोग अपनी-अपनी टुकड़ियाँ ले-लेकर निर्धारित मोर्चों पर जा डटे। ब्राह्मणों ने महालय में वेद-पाठ किया। देवद्वार बन्द होने पर सबने देवद्वार ही की वन्दना की। पट्टनी सेना में भी डंके-दमामे बज उठे और रणसिंहे फूंके गए। महाराज सेनापति भीमदेव ने प्रात:कृत्य से झटपट निवृत्त होकर गोदान-स्वर्णदान दिया। ब्राह्मणों ने देवध्वनि करके आशीर्वाद दिया। राजा ने तलवार से मौत माँगी। और घोड़े पर सवार होकर, मोर्चों के निरीक्षण को चल दिए। महमूद की सेना से चुने हुए तुर्क- सवारों की टुकड़ियाँ मोर्चे बनाकर बाण-वर्षा करती हुई खाई की ओर अग्रसर हुईं। धीरे- धीरे अमीर की सेना का सारा भार मध्य द्वार पर आ जमा। यह देख अपने-अपने सेनापतियों के आदेशनुसार हज़ारों राजपूत योद्धा मोर्चेबन्दी करके बाणवर्षा करने लगे। खाई के दोनों तटों पर दोनों ओर के शूरवीर दूर तक डटे बाण- वर्षा करने लगे। परन्तु अमीर निरुपाय था। उसके बाण व्यर्थ जा रहे थे। उधर खाई के इस पार तथा कोट से जो बाणवर्षा हो रही थी, वह आगे बढ़ती हुई अमीर की सेना की भारी क्षति कर रही थी। अमीर ने दुर्धर्ष साहस करके हाथियों को खाई में धकेल दिया, उसी के साथ अल्लाहो-अकबर का नाद करते सहस्रों तुर्क सिपाही भी पानी में कूद पड़े। बालुकाराय ने कोटों पर तेज़ी के साथ धनुर्धरों को अवस्थित कर तलवार के धनी कच्छी सवारों को मुख्य द्वार पर सन्नद्ध किया। खाई में आधी दूर तक शत्रु के हाथी घुस आए। तो राजपूत योद्धा भी 'जय-जय महादेव सोमनाथ' का नाद करते हुए जल में कूद पड़े। उन्होंने सिमट कर अमीर की मध्य सेना पर वार करने प्रारम्भ किए। परन्तु अमीर के हाथी धंसे ही चले आ रहे थे। ऊपर से दोनों ओर से जो बाण-वर्षा हो रही थी, उससे आकाश भरा पड़ा था। महासेनापति भीमदेव एक ऊँचे बुर्ज पर खड़े युद्ध देख रहे थे। बालुकाराय प्रबल पराक्रम से शत्रु की सेना का गतिरोध कर रहे थे, यद्यपि कच्छी योद्धाओं की मार से अमीर के हाथियों की पंक्ति दो भागों में विभक्त हो गई थी, और राजपूतों ने तलवार से उनके बीच दरार बना ली थी। वे कंधो पर ढाल रखे जल में तलवार चला रहे थे। पर अमीर के सिपाहियों का तांता ही नहीं टूट रहा था। वह दबादब सेना को खाई में धकेल रहा था। हाथियों की ओट में असंख्य बर्बर योद्धा खाई पार कर रहे थे। उनपर न तीरों की मार थी, न तलवार की। महाराज भीमदेव ने इस कठिनाई को देखा। उन्होंने तत्काल कमा लाखाणी को आदेश भेजा कि अपने कछुओं से अमीर की गज-सेना में धंसार करो। संकेत पाते ही दो सौ कछुए तिरछी छोटी-छोटी तलवारें लेकर पानी में पैठ गए। जल के भीतर-ही-भीतर वे अमीर के हाथियों के चारों ओर फैलकर अपनी तिरछी तलवारों से हाथियों की सूंडों और पैरों में करारे घाव करने लगे। अपने काम में वे बड़े उस्ताद थे। कच्छी योद्धा उन्हें घेर कर उनकी रक्षा करने लगे। देखते-ही-देखते खाई का जल रक्त से लाल हो गया। हाथी, कछुओं से सूंड और पैरों में
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