"ऐसे नहीं, महालय की मर्यादा भी है।"
"तब ठीक है, आपकी जैसी इच्छा हो।"
"विशुद्ध शैव नृत्य होगा।"
"ऐसा ही होगा।"
"तब आओ, मैं वेशविन्यास कर दूं। ब्राह्म-मुहूर्त में अब विलम्ब नहीं है। द्वार पीठिका बजने लगी है और सर्वज्ञ गर्भगृह में पहुंच गए हैं।"
चौला ने आपत्ति नहीं की। गङ्गा ने अपने हाथों से चौला का अङ्गविन्यास किया। कुंचित केश की अनेक मेंडियाँ गूंथ कर उनमें मोती की झालरें गास दीं। रत्नखचित चोली कस दी और चान्दानेरी महीन ओढ़नी उसके कन्धों पर डाल दी। काश्मीरी शाल कटि में लपेट, लाल रंग का अधोवस्त्र पहना दिया। वक्षःस्थल में माणिक्य और भुजाओं में नीलम मणि के आभरण पहनाए। सबके बाद मस्तक पर हीरों का एक मुकुट रख दिया। यह सब शृंगार करके गंगा मुस्करा दी। पर साथ ही उसकी आँखों से दो बूंद गर्म आँसू टपक पड़े। चौला ने पूछा, "आँसू क्यों?"
"यों ही, अब चलो।'
"नहीं, कहो।"
"एक बात स्मरण करके।"
"क्या गोपनीय है?"
"नहीं, आज से पच्चीस वर्ष पहले ठीक इसी समय, इसी वेश में, इसी आयु में, एक और बालिका ने इसी पथ पर होकर महालय के गर्भद्वार में इसी अभिप्राय से प्रवेश किया था, और इस समय जो महापुरुष तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, वही उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।"
बालिका ने क्षण-भर सोचकर कहा—
"महापुरुष कौन, सर्वज्ञ?"
"हां।"
"और वह बालिका आप थीं?"
"थी तो।"
चौला बोली नहीं। चुपचाप खड़ी रही। गंगा ने उसे अंक में भर कर चूम लिया। चौला भी लिपट गई। दोनों भावमूढ़ हो गई थीं।
गंगा ने आँसू पोंछकर कहा—
"चलो।"
"चलो।"
दोनों चल दीं।
नक्षत्र पूर्व दिशा में धप-धप चमक रहा था।