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अंतिम नृत्य उसी दिन ज्योतिर्लिंग का एक सहस्र घड़े गंगाजल से रुद्राभिषेक हुआ। एक सहस्र घृत के दीप महालय में जलाए गए। एक सहस्त्र शुभ्र माला और विल्वपत्र ज्योतिर्लिंग को समर्पित किए गए। देवार्चन के बाद रत्न-मण्डप में नृत्य हुआ। नृत्य केवल चौला ने ही किया। पहले ही दिन जब चौला ने कुमार भीमदेव को देखा था, तभी वह प्यार का घाव खा गई थी। भीमदेव की सलोनी मूर्ति को वह चुपचाप हृदय में रख प्यार की पीर को छिपाती रही। बाणबली आएँगे, इसकी वह प्रतिक्षण प्रतीक्षा ही कर रही थी। जब बाणबली की अवाई की धूम मची, तो वह सबकी दृष्टि बचाकर स्त्रियों के झुरमुट में, सबसे पीछे खड़ी हो धड़कते हृदय से, मन्दिर के कोट के एक कंगूरे पर से नेत्रों की प्यास बुझा रही थी। उस श्याम-सलोनी मूर्ति को राज-गज पर देख, उसके शरीर की एक-एक बूंद नृत्य करने लगी। और अब, जब वह देवता के सम्मुख नृत्य करने आई, तो उसकी सुषमा ही कुछ और थी। उसने आचूड़ शुभ्र शृंगार किया था। उस शृंगार में वह शरपूर्णिमा की चांदनी की प्रतिमूर्ति-सी लग रही थी। उसके कण्ठ और कटि प्रदेश में बड़े-बड़े मोतियों की माला और मेखला थी। मस्तक पर उज्ज्वल हीरों से जड़ा मुकुट था, इन सब आभरणों में वह स्वयं हीरे की कनियों की एक दीप्तिवान् राशि-सी लग रही थी। उस दिन उसकी सम्मोहिनी मुद्रा को देख उपस्थित राजा-महाराजा, छत्रधारी, ठाकुर, सरदार सैनिक सब कोई मन्त्र-मुग्ध से हो गए। कोई 'वाह' भी न कह सका। युवराज भीमदेव की भी ऐसी ही स्थिति थी, वे भी प्रथम दर्शन में ही उसकी मधुर मूर्ति को हृदय में धारण करके जो ले गए सो आज उसे सम्मुख देख उन्होंने अपने नेत्रों का फल प्राप्त कर लिया। वे नेत्रों के द्वारा जैसे उस शोभा-सुषमा, सुख और शोभा की अजस्र धारा को पीने लगे। उसी रस-पान में वे आत्मविस्मृत हो गए। उन्हें होश तब हुआ जब गंग सर्वज्ञ ने नृत्य बन्द करने का आदेश दिया। सर्वज्ञ का आदेश पाते ही चौला नत-वदन देव-वन्दन कर वहीं भूमि पर लोट गई। उसने मन-ही-मन प्रार्थना की-“हे देव, मेरे इस आराध्य की रक्षा करना।" इसी क्षण गंगसर्वज्ञ ने जलद गम्भीर स्वर में कहा, “आज आप सब अन्तिम बार भगवान् सोमनाथ का दर्शन कर लीजिए। अब से जब तक गज़नी के अमीर का आतंक दूर न हो, देव-पट बन्द रहेंगे। आप दर्शन न कर सकेंगे। केवल मैं देव दास एकमात्र देवार्चन करूँगा, आज मैं इस देवधाम और देवनगर के सब अधिकार गुर्जर युवराज भीमदेव को सौंपता हूँ। आज से नगर और महालय पर उन्हीं का अबाध शासन चलेगा। आप सब लोग पूर्ण अनुशासन से इस विपत्ति-काल में उनके आदेशों का पालन करेंगे। युवराज भीमदेव को आज देवाविष्ट करता हूँ। अब से भूतपावन भगवान सोमनाथ का निवास युवराज के शरीर में रहेगा। युवराज भीमदेव ही अब से इस संयुक्त धर्म-सेना के एकछत्र महासेनापति हैं। सो इनकी प्रत्येक आज्ञा का पालन आप भगवान् सोमनाथ की आज्ञा समझ कर कीजिए!"