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महाराज वल्लभदेव भी उसी भाँति पाटन में प्रच्छन्न भाव से समय-समय पर आकर इस कुटिल ब्राह्मण से परामर्श कर जाते थे तथा राजकोष की गुप्त सहायता ले जाते थे। इस प्रकार पाटन में अमीर की वापसी के स्वागत की तैयारियाँ हो रही थीं। यह नहीं कहा जा सकता था कि पाटन अमीर का स्वागत करेगा या भीमदेव अथवा दुर्लभदेव का। सब-कुछ सोमनाथ पट्टन के परिणाम पर ही निर्भर था।