आवश्यक परामर्श कर तत्क्षण सिद्धपुर की ओर कूच कर गए। अब चण्ड शर्मा ने नगर के अवशिष्ट नागरिकों के प्रमुखों को दरबार गढ़ में बुलाया और उनसे कहा, "भाइयो, यह भारी विपत्काल आया है, ऐसा करो जिससे साँप मरे, लाठी न टूटे। राजा सब राजकोष और सेना लेकर भाग गया है। हमारे पास न लड़ने के शस्त्र हैं, न सिपाही। हम किसी भाँति गज़नी के सुलतान का मुकाबला कर ही नहीं सकते। इसलिए मेरी राय तो यह है कि हम लोग चलकर अमीर की खातिर-खुशामद करके किसी तरह उससे यह आश्वासन ले लें कि पाटन पर वह आक्रमण न करे, सीधी राह सोमनाथ चला जाए। हम उसका कोई विरोध नहीं करते। सोमनाथपट्टन में उसका जो हो सो हो।” कुछ लोगों ने इसका विरोध किया। कहा, “ऐसे कायर प्रस्ताव से तो मर मिटना ही अच्छा है, ऐसा हम करेंगे तो पाटन की प्रतिष्ठा कहाँ रहेगी?” परन्तु चण्ड शर्मा ने कहा, “भाइयों, जान-बूझकर अपना सत्यानाश करना बुद्धिमानी की बात नहीं है। अमीर तुम्हारे घर-बार लूट-लाटकर, तुम्हारी बहू-बेटियों की आबरू धूल में मिलाकर, पाटन को राख का ढेर बनाकर आगे जाए, वह अच्छा, या वह बाहर-ही-बाहर खिसक जाए, यह अच्छा है? आखिर बाणबली भीमदेव उसके दाँत तोड़ने को प्रभास में बैठे ही हैं। यह तो एक राजनीति की बात है, इसमें कायरता क्या है। केवल नष्ट होने के लिए साहस करना तो आत्मघात कहाता है, और आत्मघात सदैव ही पाप है।" अछता-पछताकर पाटन के नागरिकों ने चण्ड शर्मा की युक्ति को स्वीकार किया। और तब चण्ड शर्मा ने उन्हें समझा-बुझाकर तथा शान्त कर विदा किया। इसके बाद वे अपनी योजना-पूर्ति की सब गोपनीय व्यवस्था करने लगे।
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