वीरों के दल-बादल देखते ही देखते वीरों के दल-बादल पाटन में आने लगे। भृगुकच्छ के दद्दा चौलुक्य, कच्छ के कमा लाखाणी, कीर्तिगढ़ के केसर मकवाणा आदि सामन्त-भायात अपनी-अपनी सैन्य लेकर पाटन में आ जुटे। जूनागढ़ के राव तो पहले ही से जमे थे। द्वारिका, बांसवाड़ा और दमन से आबू-पर्यन्त छोटे-बड़े सरदार योद्धा सैनिक तथा कच्छ, लाट, सोरठ, श्रीमाल, गुजरात और कोंकण के धर्म-वीर अपनी-अपनी तलवार धर्म को अर्पण करने आ जुटे। इस समय पाटन में अनोखा दृश्य था। एक ओर पाटन के नगर-जन घर-बार छोड़कर बाहर जा रहे थे, दूसरी ओर देश-देश के योद्धा शस्त्र बांध युद्ध उमंग में हुंकार भरते पाटन आ रहे थे। अब अधिक समय नष्ट करना ठीक न समझ दामोदर महता ने राजगढ़ में दरबार की घोषणा कर दी। छोटे-बड़े सबने इस दरबार में भाग लिया। दरबार में सर्वसम्मति से वल्लभदेव को गुजरात के अधीश्वर की पाग बंधाई गई तथा उनके नाम की प्रशस्ति गाई गई। राज्य के प्रमुख जनों को एवं राज-कारबारियों को एवं नगर जनों को दान-मान से सत्कृत करके दरबार की औपचारिक कार्रवाई समाप्त कर डाली गई। बूढ़े सनकी महाराज चामुण्डराय को किसी ने याद भी नहीं किया। दरबार की समाप्ति पर उसी रात गुप्त मंत्रणा- सभा बैठी, जिसमें सभी प्रमुख राजपुरुष और राज अतिथि उपस्थित हुए। दामोदर महता ने वार्ता प्रारम्भ की। उसने एक बार चारों ओर दृष्टि डाली और कहा, “आज हमारे सम्मुख महत्त्वपूर्ण कठिनाइयां हैं। हम चारों ओर शत्रुओं से घिरे हैं। हमारे घर में छिद्र हैं, और एक प्रबल शत्रु हमारे धर्म और हमारी संस्कृति को विध्वंस करने आ पहुँचा है। पाटन की एक निष्ठा है, पहले धर्म और पीछे राज-सत्ता। अब हमें एक पथ निर्धारित करना है, जिससे राजनीति घरू शत्रुओं पर और तलवार धर्म-शत्रुओं पर प्रयुक्त हो। इसी पर हमारी विजय निर्भर है।" “निस्संदेह ऐसा ही है!' भस्मांकदेव ने गम्भीर मुद्रा से कहा, “तो प्रथम मालव पर विचार करना चाहिए।" “उसके सम्बन्ध में आप क्या कहते हैं, देव? आपने वहाँ क्या देखा?" "केवल एक बात, मालव की सामर्थ्य अपार है और अशक्ति निस्सीम।" “इसका क्या अर्थ है?” राव नवधन ने आश्चर्य-मुद्रा से कहा। भस्मांकदेव ने कहा, “महाराज, पाटन मालव के सामने नगण्य है। पाटन की महत्ता महाराज मूलराजदेव तक ही सीमित है। परन्तु मालव में परम्परा की महत्ता है। महाराज मुंज, उनके पिता, भाई सिन्धुराज और आज के मालवपति भोजराज इन सबकी अपनी महती निष्ठा है। मालव में वीर हैं, विद्वान हैं, वीरांगना हैं, विशाल गज-सैन्य है।" “यह हुई अपार सामर्थ्य; अब निस्सीम अशक्ति कैसी है, वह भी कहिए।” दामोदर ने गम्भीर मुद्रा में कहा। “कहता हूँ, विद्या, वीर और वारांगना-इन तीनों का संगम ही मालव की निस्सीम अशक्ति है। जब भी उसका पतन होगा, इसी त्रिपुटी के द्वारा।"
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