देवगढ़, सोजत, बदनौर और टोडागढ़ के सरदार भी अपनी-अपनी सेनाएँ लेकर आ पहुँचे। इन सबको अपने-अपने कार्य करने के गुप्त आदेश दे दुर्लभराय ने आगे चलता कर दिया। ये सब सरदार छोटी-छोटी टुकड़ियों में सारे जंगल में बिखरकर शत्रु की घात में जमकर बैठ गए। भीलों और मीनाओं को भी तीर-कमान ले घाटी के दोनों ओर दुर्गम गिरिशृङ्ग पर चढ़ छिपकर बैठने का आदेश दे विदा किया। इस कार्य से निपट कर उसने राजधानी को खाली करना प्रारम्भ किया। नगर में ढिंढोरा फिरवा दिया गया। नगर-निविासयों को बारह प्रहर के भीतर-भीतर अपना- अपना सब धन-जन लेकर अरावली की दुर्गम उपत्यका में जा बैठने का आदेश दे दिया गया। देखते-ही-देखते चहल-पहल और धन-धान्य से भरा-पूरा नगर नान्दोल जन-शून्य होने लगा। लोग विविध वाहनों पर अपनी गाँठ-गठरी लादे पंक्ति बाँध पर्वत-श्रेणियों की ओर जाने लगे। राज सेना व्यवस्था और प्रबन्ध में व्यस्त हुई। राजकोष, परिवार और सब धन भी राजमहलों से हटा दिया गया। बारह प्रहर में नगर जन-शून्य हो गया। अब राजा ने सब घाट, कुएँ, मार्ग तोड़-फोड़ डाले और स्वयं सुरक्षित स्थान में अपनी सेना की छावनी डालकर बैठ गया। दुर्लभराय ने महाराज अनहिल्लराय को यह सम्मति दी कि ज्योंही अमीर यहाँ से पार हो जाए, आप अपने नगर में आ जाएँ तथा वहाँ की व्यवस्था करें। उसने उसकी सैन्य की सहायता भी नहीं ली, तथा अपनी योजना पूरी करने को गहन वन में प्रवेश किया। नान्दोल के बाहर निकलते ही घना जंगल था, और इसके बाद वह पहाड़ी घाटी जो मीलों लम्बी थी। कहीं-कहीं तो यह इतनी तंग थी कि इसकी दोनों ओर के पर्वत-श्रृंङ्ग परस्पर मिले हुए प्रतीत होते थे। इसके बाद ही एक हरा भरा समतल मैदान था, जहाँ मीठे पानी की एक छोटी-सी पहाड़ी नदी बहती थी, जो वर्षा ऋतु में तो भयानक हो जाती थी, परन्तु और ऋतुओं में उसमें थोड़ा पानी भरा रहता था। दुर्लभराय ने अपनी विलक्षण योजना से व्यवस्था ठीक करके, सेना को आवश्यक आदेश देने प्रारम्भ कर दिए। अमीर अजमेर से आगे बढ़ा। रास्ता साफ और हरा-भरा देख उसका चित्त शांत हुआ। अब तक उसने भयानक रेगिस्तान और भारी-भारी नदियों की बाधाएँ झेली थीं। अब यह सुखद हरा-भरा जंगल देखकर वह प्रसन्न हो गया। यद्यपि उसे अनहिल पट्टन पहुँचने की जल्दी थी। पर वह और उसकी सेना इस मनोरम प्रदेश को देखकर मस्त हो गई। चारों ओर हरे-हरे खेत लहरा रहे थे। परन्तु गाँव में उसे कोई मनुष्य नहीं दीख पड़ता था, इसपर उसने अधिक विचार नहीं किया। वह आगे बढ़ता ही गया। ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ता गया, बाधाएँ सामने आती गईं। गाँव नगर सब उजाड़ थे, राह-घाट टूटे हुए, खेत जले हुए और निर्जन। उसकी सारी प्रसन्नता हवा हो गई। नान्दोल पहुँचकर उसने नगर को उजाड़ शून्य पाया। एक चिड़िया का पूत भी वहाँ न था। यह देखकर क्रोध से उसकी आँखें जल उठीं। उसने यह सुन रखा था कि यह नगर अजमेर राज्य का मित्र है, अत: उसने क्रोध में आकर नगर को फूंक कर छार करने का आदेश दे दिया। नगर धांय-धांय जलने लगा और देखते-ही-देखते वह छार हो गया। पहले उसकी
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