" "वह क्या तुम्हें प्यार करती थी?" "नहीं।" "किसी और को प्यार करती थी?" “ढुण्डिराज सांभरपति के पाटवी कुंवर को।" “पाटवी कुंवर कहाँ है?" "लड़ाई में काम आए।" "कुछ देर तक अमीर गम्भीर मुद्रा में सोचता रहा। फिर उसने आहिस्ते से कहा- "तो अपने वायदे के मुताबिक हम तुम्हें अजमेर का राजा मंजूर करते हैं।" "खुदावन्द अमीर की जय हो।" "लेकिन तुमने अपने मालिक से दगा की है, इसलिए हम तुम्हें अजमेर के राजा के उत्तराधिकारी के सुपुर्द करते हैं और तुम्हारी कारगुज़ारी से भी उसे आगाह किए देते हैं। “यह कैसी बात?" “यह बादशाहों और राजाओं की बात है। गुलाम, दगाखोर और कमीने लोग उसे नहीं समझ सकते हैं।" अमीर ने मीर मुंशी को हुक्म दिया, “इस आदमी की तमाम हकीकत लिखकर, इसे हथकड़ियों और बेड़ियों से जकड़ कर राजपूतों के सुपुर्द कर दो।” मीर मुंशी ने अदब से अमीर का हुक्म स्वीकार किया। सोढल का मुँह काला पड़ गया। एक बार साहस करके उसने फिर अमीर को उसके वायदे की याद दिलाई। दया की प्रार्थना की। पर अमीर ने घृणा ने मुँह सिकोड़कर कहा-“अजमेर के नए महाराज, हमने अपना वचन पूरा कर दिया। तुम्हें राजा मंजूर कर लिया। इसी से तुम्हें कत्ल करने का हुक्म न देकर राजपूतों के सुपुर्द करते हैं। हमारी मदद का इनाम तुम्हें मिल गया। अब अपने मालिक से दगा करने की सज़ा तुम्हें उनसे पानी है।" इतना कहकर अमीर ने उसे अपने सामने से हटाने का संकेत किया और तत्काल वहाँ से कूच करने की आज्ञा दी।
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१५०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।