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पुरस्कार अजमेर को लूट और आग की भेंट कर अमीर ने वीटली दुर्ग पर धावा करने का इरादा किया। उसे सूचना मिली थी कि वीटली दुर्ग में राजा का शेष परिवार, राजपुत्र, अटूट राजकोष तथा बहुत-सी धन-सामग्री है। परन्तु वीटली दुर्ग साधारण दुर्ग न था। वह एक दुर्गम और ऊँची पहाड़ी पर था। उसकी तीन दिशाओं में सीधी दुरूह पर्वत की चट्टानें और एक दिशा में अगम खण्ड था। दुर्ग की प्राचीर बाईस हाथ ऊँची और ग्यारह हाथ चौड़ी थी। दुर्ग में रक्षा और खान-पान के प्रभूत साधन एकत्र थे। दुर्ग भंग करना असम्भव था और दस वर्ष घेरा डालने पर भी दुर्ग ताबे हो, यह सम्भव न था। उधर अमीर की सेना को भी इस युद्ध में कम क्षति नहीं हुई थी। गज़नी से चलकर उसे यह पहली ही बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इसमें वह स्वयं घायल हो गया था। साथ ही उसके बहुत से साहसी सैनिक खेत रहे थे। बहुत से घोड़े मारे गए थे। उसकी सेना ही खंडित हो गई थी। इससे वह खीझ रहा था। उसे विश्राम की अत्यन्त आवश्यकता थी। पर उसे सोमनाथ पहुँचने की जल्दी थी। उसे यह भी भय था कि कदाचित् ढुन्दिराज सांभरपति उस पर पीछे से न टूट पड़े। दूतों के द्वारा उसे मालूम हो गया था कि अजमेरपति की बहुत सेना अभी भी है। वीटली दुर्ग में भी यथेष्ट सेना थी। चारों ओर से सैनिक एकत्र होते चले आ रहे थे। लोगों में क्रोध और जूझ मरने के भाव भरे हुए थे। इससे उसने अपने सरदारों और सेनापतियों का एक छोटा-सा दरबार किया। सब विषयों पर विचार-परामर्श कर तुरन्त गुजरात की ओर कूच करने का विचार स्थिर किया। तुरन्त अभी उसे एक महत्त्वपूर्ण काम और करना था, वह था उस विश्वासघाती को पुरस्कृत करना जिसकी सहायता से उसकी विजय पराजय में बदल गई थी। यह अजमेरपति का मन्त्रीपुत्र सोढल था, जिसपर राजा का पुत्रवत् प्यार और विश्वास था, और जिसे राजा ने आठ हज़ार सवार और पन्द्रह हज़ार पैदल देकर अजमेर की रक्षा सौंपी थी। अमीर ने उसे अपने सम्मुख उपस्थित करने की आज्ञा दी। सामने आकर युवक ने अमीर को कोर्निश की। अमीर ने पूछा- "तुम्हीं वह आदमी हो, जिसने हमें अजमेर के वीर महाराज के सब भेद दिए?" “मैं ही वह आदमी हूँ।" "तुम अजमेर के महाराज के मन्त्रीपुत्र और उपसेनापति हो?" “अजमेर के महाराज ने तुम्हारे साथ कभी कोई बदी की थी?" "नहीं।" "अजमेर के महाराज से उनकी रिआया क्या खुश नहीं थी?" "तुम्हारे पिता अजमेर के वज़ीर क्या यह जानते हैं कि तुमने अपने मालिक से दगा की है?" "नहीं।" “जी हाँ। “खुश थी।"