धर्मगजदेव सांभर और अजमेर का संयुक्त इलाका उन दिनों सपादलक्ष कहलाता था, सांभर पुरानी राजधानी थी और अजमेर की नई बस्ती बसी थी, तब चौहान राजाओं ने इस स्थान को युद्धोपयोगी जान, पहाड़ियों पर चारों ओर सुदृढ़ गढ़ बना, अजमेर ही को अपनी मुख्य राजधानी बनाया था। उन दिनों अजमेर पर चौहान राजा धर्मगजदेव का अबाध शासन था। धर्मगजदेव बड़े वीर, साहसी और योद्धा पुरुष थे। अजमेर अरावली की उपत्यका में राजस्थान का मुख था। यह नगर चारों ओर से दुर्गम पर्वत-श्रेणियों से घिरा हुआ अति सुरक्षित था। धर्मगजदेव को विदित था कि मारवाड़ की मरुस्थली को पार करके जो आततायी आक्रान्ता राजस्थान में प्रवेश करना चाहे, उसे अजमेर ही के मार्ग से आना पड़ेगा। इससे वह अपने को राजस्थान का दिग्पाल समझकर सदैव चौकन्ना रहता था धर्मगजदेव ने जब सुना कि गज़नी का अमीर बर्बर तुर्कों के दल-बादल ले मारवाड़ की मरुस्थली को पार करके ताबड़तोड़ अजमेर की ओर घुसा चला आ रहा है, तो उसने अविलम्ब उसके सम्मुख होने की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दीं। अमीर से मुठभेड़ का उसका यह पहला ही अवसर न था, इससे प्रथम वह दो बार उससे टक्कर ले चुका था । वह जैसा रणशार था, वैसा ही राजनीतिपटु भी था। उसने सब कोष-खज़ाना माल-मत्ता ‘वीटवी' के किले में भेज दिया। काफी दिनों तक चल सकने योग्य रसद अजमेर के किले में एकत्र कर ली। गाँव-गाँव ढिंढोरा पिटवा कर लोगों को सावधान और सुसज्जित रहने का आदेश दे दिया। जिन नगर-गाँवों पर खतरा था, उन्हें खाली कर दिया। राहबाट के कुएँ-तालाब-बाँध सब तोड़ डाले। फसलें जला दीं। वृक्ष काट डाले, सड़कें-पुल-मार्ग सब तोड़ डाले। घाटियों को बन्द कर दिया। इस अल्पकाल में जितना सम्भव था, तैयार होकर उसने अजमेर से बाहर आकर पड़ाव डाला। धर्मगजदेव के आह्वान पर ग्रामीण कृषक हल-बैल छोड़, धनुष- बाण और ढाल-तलवार हाथ में ले, इस आततायी से लड़ने को आ जुटे। आसपास के ठिकानेदार, ज़मींदार और सगे-सम्बन्धी राजा लोग भी उसकी सहायता को आ पहुँचे। चारों ओर से चौकी पहरे का प्रबन्ध कर धर्मगजदेव ने अपनी सेना का निरीक्षण किया। उसके विभाजन किए और फिर वह अनुभवी दूतों को अमीर की खोज खबर लेने भेजकर सावधान हो अमीर की अवाई की प्रतीक्षा करने लगा। महमूद ताबड़तोड़ मंजिल-दर-मंजिल कूच करता हुआ, मरुस्थली की थकान उतारने की परवाह न कर अजमेर की सीमा में आ घुसा। उसने पुष्कर के उस पार अपनी छावनी डाली। धर्मगजदेव यह समाचार पाते ही पुष्कर की ओर बढ़ा। उसने पुष्कर का पवित्र जलाशय अपने अधिकार में कर लिया। और सेना को युद्ध के लिए सन्नद्ध कर छावनी डाल, अमीर की गतिविधि का निरीक्षण करने लगा। अमीर महमूद चौहानराज धर्मगजदेव के पराक्रम से बेखबर न था। वह उससे युद्ध का खतरा उठाना नहीं चाहता था। अत: उसने मैत्री-सन्देश लेकर दूत, मुलतान के
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