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"घोघाबापा क्या उसे राह देंगे?" "उन्होंने उसके हीरों-भरे थाल में लात मारकर कहा है कि यह लात ही मेरा उत्तर राजा सब बातें भूलकर बालक की भाँति हो-हो करके हँस पड़े उन्होंने कहा, “यह हैं घोघाबापा, मैं क्या उन्हें जानता नहीं हूँ।" “परन्तु महाराज, मुलतान के महाराज अजयपाल और लोहकोट के भीमपाल ने भय और लालच में फँसकर उसे राह दे दी है। बापा ने कहा, जब तक मरुस्थली के मुख पर मेरी चौकी है, मरुस्थली में एक पंछी भी पर नहीं मार सकता। परन्तु फिर भी महाराज सावधान रहें। इसी से मुझे भेजा गया है।" "तो अच्छा किया।” फिर बालुकाराय की ओर देखकर कहा, “बालुका, बेटा, इस अमीर को मार भगा। देख, यह गुजरात की भूमि पर पैर न रखने पाए।" बालुका चुपचाप खड़ा रहा। दामोदर ने कहा, “महाराज! यह सब तो समय पर होता रहेगा। पर अभी आप विमलदेव शाह को महामन्त्री के पद पर नियुक्त कीजिए।" महाराज ने भयभीत नेत्रों से विमल की ओर देखा। फिर कहा, "ठीक है विमल, तू इन हरामखो...नहीं, नहीं, यह बात नहीं, सब टंटेखोरों को ठीक कर।" फिर सामन्त की ओर देखकर आनन्द मुद्रा से कहा, “आ पूत, आ। अरे महता, देख, यह सामन्त अभी जाए नहीं।" और वे फिर मसनद पर लुढ़क गए। महता ने हाथ ऊँचा करके कहा, “महामन्त्री विमलदेव शाह की जय!” सब कंठों ने मिलकर जयघोष में योग दिया।