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कहा, “और तुम बालचन्द्र?” “मैं महाराज का निर्दोष सेवक हूँ।" दामोदर ने देवसेन से कहा- "देवसेन, इनके वस्त्रों की तलाशी तो लो।" "तलाशी में बालचन्द्र के पास से महारानी का कंगन, स्वर्णदम्म और चम्पकबाला के पास मोती की माला मिली। खवास के पास विष की पुड़िया भी मिली। तीनों वस्तुएँ महाराज के पास रख दी गईं। राजा उन वस्तुओं को पहचान कर काठ हो गए। दामोदर ने कहा, “तुम बता सकते हो, ये वस्तुएँ तुम्हारे पास कहाँ से आईं।" "नहीं बता सकते, हम कुछ नहीं जानते।" दामोदर ने संकेत किया। देवसेन दो सैनिकों को भीतर ले आया। दामोदर ने उनसे "इस स्त्री को नंगा करके कोड़े लगाओ।" सिपाही आगे बढ़े, यह देख चम्पकबाला रोती हुई बोली, “नहीं-नहीं, मैं सब साफ- साफ कह देती हूँ।" इसके बाद उसने सब षड्यन्त्र का भण्डाफोड़ कर दिया। बालचन्द्र खवास भी अपराध स्वीकार करके राजा के चरणों में आ गिरा। केवल यति ने कुटिल हास्य करके कहा, "झूठ, सब झूठ।” अब बालुकाराय ने उस सामन्त को भी लाकर उपस्थित किया, पर उसने भी सब अस्वीकार किया। परन्तु अभियोग प्रमाणित करने भर की सब सामग्री जुट गई थी। दामोदर ने कहा, "महाराज, आपकी आज्ञा के बिना हमने महारानी और राज्यमन्त्री वीकणशाह को बन्दी नहीं किया था। सो आप इन दोनों को बन्दी करने की आज्ञा दीजिए।" महाराज चामुण्डराय शोक, क्रोध और संताप से सिर पकड़कर बैठे रह गए। दामोदर ने कहा, “महाराज ने न्याय का वचन दिया है। आज्ञा दीजिए!" राजा ने दोनों को लाने की आज्ञा दी। महारानी क्रोध से लाल मुँह किए सिंहिनी की भाँति आ खड़ी हुईं। दामोदर ने कहा, “महारानी बा, मैं आपसे कुछ प्रश्न करूँगा।" “गुजरात की रानी अपने चाकरों को जवाब देने को बाध्य नहीं है।" “परन्तु मैं महाराज की ओर से पूछता हूँ। “महाराज अभी जीवित हैं, उनमें बोलने की भी शक्ति है, वे ही क्यों नहीं पूछते?" राजा ने कहा, “महारानी, महता की बात का जवाब दो।" “मैं कोई जवाब नहीं दूंगी। मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हूँ।" "आपने राजविद्रोह किया रानी बा?" “रानी स्वयं ही राजा की अर्धांगिनी है, उसके प्रति राजविद्रोह का अपराध लगाने का अभिप्राय है, उसका अपने ही प्रति विद्रोही होना। सो यह असत्य है।" “आपने महाराज को मारने का षड्यंत्र किया था?" "राजा कभी मरता ही नहीं है, राजा चिरंजीव है।" “परन्त मैं महाराज चामुण्डराय के सम्बन्ध में कहता हूँ।