दामोदर की कूटनीति श्री भस्मांकदेव को नगर के अवन्ति-द्वार से बाहर कर दामोदर पीछे लौटे। इसी समय आनन्द ने सम्मुख आकर प्रणाम किया। दामोदर ने प्रसन्न होकर कहा- “हो गया?" “जी!" कुछ देर दामोदर कुछ सोचते रहे। फिर उन्होंने कहा, “आनन्द, सुना है नान्दोल में सैनिक तैयारियाँ बड़ी धूम-धाम से हो रही हैं। इस समय यदि कोई शस्त्रों का सौदागर अच्छे शस्त्रास्त्र वहाँ जाकर बेचे, तो लाभ ही लाभ है।" “महाराज, एक अच्छा सौदागर आज ही अपने साथ बहुत-से शस्त्रास्त्र लेकर जाने वाला है।" “यह तो बहुत अच्छी बात है। वहाँ इस समय अर्बुद राजकुमार श्री कृष्णप्रसाद देव भी विराजमान हैं, वै नान्दोल के युवराज श्री बालाप्रसाद के परम मित्र हैं। दोनों मित्रों को शस्त्र विद्या का भी बड़ा शौक है। यदि वह गुणी उन्हें शस्त्र-संचालन से प्रसन्न करके उन्हें अनुकूल कर ले, तो भविष्य उसका बहुत उन्नत हो सकता है। पाटन राज्य की ओर से उसे प्रमाण-पत्र दिया जा सकता है।" “सौदागर निश्चय ही दोनों राजकुमारों को अपनी अस्त्र-विद्या से प्रसन्न कर लेगा। “परन्तु आनन्द, नान्दोल के राजकुमार और अर्बुदेश्वर के पाटवी दोनों ही परम रसिक हैं। वे गान-वाद्य के भी बड़े प्रेमी हैं। यदि वह गुणी सौदागर संगीत का भी पारखी हुआ तो राजकुमारों का प्रिय अन्तर्वासी बन सकता है।" आनन्द से हँसकर कहा, “महाराज, वह सौदागर ऐसा ही पटु और पारंगत है।" “तो आनन्द, यह मुद्रा ले, तू प्रमाण-पत्र तैयार करके सौदागर को दे। यही मुद्रा दिखाकर विमलशाह से जितना जी चाहे, दम्म सौदागर को दिला दे।" "जो आज्ञा!” आनन्द नमस्कार करके चलता हुआ। इसी समय देवसेन ने सम्मुख आकर प्रणाम किया। और कहा, “महाराज, दोनों कब्जे में हैं।" "ठीक है, देवसेन, मैं अब विश्राम करूँगा। तू जा विमलशाह के घर, और उनसे कह, कि महामन्त्री वीकणशाह पर कड़ी नज़र रक्खें, और उसके घर पर भी पहरा बैठा दें।" देवसेन प्रणाम करके चला गया। दामोदर ने अपने आवास में जा विश्राम किया। अभी सूर्य की एकाध ही किरण पूर्व दिशा में फूटी थी।
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/११७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।