“यह भी ठीक है, परन्तु चर विद्वान, प्रतिभाशाली और राजनीति-पटु होना चाहिए।" “महाराज, मालवराज की सभा में जाने योग्य व्यक्ति पाटन में एक ही है, भस्मांकदेव।" “तो दामो, भस्मांक को तुरन्त मालव भेजो। और ऐसा करो जिसमें अभी यह बाहरी कलह टले। पहले गज़नी का अमीर और पीछे और कुछ।” “ऐसा ही होगा महाराज, परन्तु आप भी अभी इसी क्षण यहाँ से प्रस्थान कीजिए। केवल एक प्रहर रात्रि शेष रह गई है। आपको सूर्योदय होने से पूर्व ही सिद्धस्थल पहुँच जाना चाहिए। यहाँ हम और विमलदेवशाह सब ठीक-ठाक कर लेंगे। आप राधनपुर में सैन्य-संग्रह करना प्रारम्भ कर दें। सिद्धस्थल त्याग दें। अब दुर्लभराय पर भरोसा नहीं किया जा सकता।" "तब हमारे अश्व मँगाओ दामो।" "सब लोग उठे। महाराजकुमार भीमदेव और वल्लभदेव अश्व पर सवार हो गुप्त मार्ग से वहाँ से चल दिए। उनके पीछे दो अश्वारोही और चले। इसके बाद चण्ड शर्मा, दामोदर महता और विमलदेव अपने-अपने पथ पर चले।
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