दृढ़ता टपकती थी। नेत्रों में साहस की दीप्ति प्रज्वलित थी। उसका मस्तक खूब चौड़ा था । नाक उभरी हुई थी। और सब मिला कर उस की आकृति भव्य और आकर्षक थी। वह इस समय मेजर जनरल फेज़र की प्रतीक्षा कर रहा था । ज्यों ही मेजर ने क़दम रखा-लेक ने उठ कर और दो क़दम आगे बढ़ कर उससे हाथ मिलाया और प्राग्रह पूर्वक स्वागत किया, और कहा, "मेजर-जनरल, दुर्भाग्य है कि हमें निरन्तर असफलता का सामना करना पड़ रहा है। ज्यों ही मुझे सूचना मिली कि होल्कर सहारनपुर से चल कर शामली में लश्कर डाले पड़ा है, मैंने उस पर कूच बोल दिया। पर वहाँ मेरे पहुँचने से प्रथम ही वह डाकू भरतपुर की ओर रवाना हो चुका था। वह जल्द से जल्द भरतपुर पहुंचना चाहता है । मैं चाहता था कि मैं बीच मार्ग में ही उसे धर दबोचं. फ़रुखाबाद में आमना- सामना हुअा भी—पर हमला करने का मेरा साहस न हुआ । अब सुना है—वह निर्विघ्न भरतपुर राज्य के अन्दर डीग के किले में जा पहुँचा है । और पहले की अपेक्षा अधिक सुरक्षित है। उधर गवर्नर जनरल ने मेरी मलामत की है । यह खत पढ़ लो।" लेक ने वह हाथ का खत मेजर-जनरल फ्रेज़र के हाथों में दे दिया। खत में लिखा था -"दुर्भाग्य की बात है कि होल्कर आप से बच कर निकल गया। इस बात को आप उतने ही ज़ोर से अनुभव करते होंगे जितना कि मैं । होल्कर को गिरफ्तार कर लेना अथवा उसका नाश कर डालना सर्वथा वाँच्छनीय है । जब तक वह नष्ट न कर दिया जायगा या कैद न हो जायगा, तब तक हमें शान्ति नहीं मिल सकती । इसलिए मैं आप पर इस बात के लिए भरोसा करता हूँ कि जहाँ तक भी वह जाय, उसका पीछा करने से किसी हालत में न हटें।" पत्र को मोड़ कर वापस देते हुए फेज़र ने कहा, "लेकिन जनरल, मैं यक़ीनन तौर पर कह सकता हूँ कि अभी होल्कर डीग के पास नहीं पहुँचा है । बेशक उसकी पैदल सेना और तोपखाना डीग पहुँच चुके हैं। यदि हम फुर्ती करें तो डीग पहुँचने से पहले-किले से बाहर ही उसे घेर
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