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इस समय अस्सी हज़ार थी, जो पराक्रमी और शक्तिशाली सिखों की संगठित और इटली तथा फ्रान्सीसी अफ़सरों द्वारा यूरोपियन रीति पर युद्ध- कला में शिक्षित थी। रणजीतसिंह को घोड़ों का बड़ा शौक था-वह स्वयं भी उत्तम शहसवार था। उसका घुड़सवार रिसाला प्रथम श्रेणी का था। तथा तोपखाना भी परम उत्कृष्ट था—जिस में पाँच-सौ उम्दा तोपें थीं। इस समय उसकी रकाब के साथ हरीसिंह नलवा जैसे वीर सेनानी थे, जिस के नाम के आतंक ही से पठान स्त्रियों का गर्भपात हो जाता था। वह वीर सेनापति ज़मरुद के दुर्ग का अधिपति तथा पश्चिमो- त्तर सीमा पर सिख साम्राज्य की आँख था। रणजीतसिंह साहसी, वीर, योद्धा और प्रबन्धक था। अपने धर्म का