बैठा। शताब्दियों तक सारे यूरोप की राजसत्ताएँ उस के हाथ की कठ- पुतलियाँ बनी रहीं । यह यूरोप की अन्धाधुन्धी का मध्य-युग था। उसी समय यूरोप पर मंगोलों ने आक्रमण किया और उस के बाद ही तुर्को ने समूचे पूर्वी यूरोप को ग्रस लिया। परन्तु यूरोप का विकास तेरहवीं शताब्दी से ही होने लगा था । वेनिस, जेनेवा, पीसा, फ्लोरेन्स आदि नगरों का उदय हो चुका था, जिन का पोषण व्यापार से होता था। उस समय सारे व्यापार का केन्द्र मार्ग कुस्तुन्तुनिया हो कर था। भारत और चीन के सम्बन्ध में उस समय भी यूरोप के लोग कुछ नहीं जानते थे। परन्तु जब भूमध्यसागर और अटलांटिक महासागर की छाती पर सवार होकर पोर्चुगीज़ नाविक दीयाज़, कोलम्बस, वास्को-द-गामा के ऐतिहासिक अभियान हुए, तो पूर्व का द्वार यूरोप के लिए खुल गया। भारत, चीन और अमे- रिका की उन्हें उपलब्धि हुई । और इन देशों की सम्पत्ति पर सारे पश्चिमी यूरोप की लोलुप दृष्टि पड़ी, जिस से उन में प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी । पोर्चु- गीजों के बाद डच और उस के बाद अंग्रेजों ने उद्योग किए। फ्रेन्चों ने भी हाथ-पैर मारे । अन्त में प्लासी के निर्णायक युद्ध में अंग्रेज़ी राज्य की नींव भारत में पड़ी । आज इस राजा का, और कल उस नवाब का पक्ष ले कर, उन्होंने, अन्ततः सारा भारत अपने अधिकार में कर लिया। इस के बाद उन्होंने रजवाड़ों को हड़पने की चेष्टा की, जिस के फलस्वरूप सत्तावन का विद्रोह उठ खड़ा हुआ । जिस में फाँसी और तोप के मुँह पर बाँध कर जीवित मनुष्यों को उड़ा कर नर-वध का महा-ताण्डव कर के अंग्रेज़ भारत के एकनिष्ठ अधिराज बन बैठे । -
भारत में पोर्चुगीज़, डच और फ्रेन्चों के मुक़ाबिले में अंग्रेजों को जो सफलता मिली, वह केवल अंग्रेजों के भाग्योदय के कारण नहीं । इस का कारण वह प्रौद्योगिक क्रान्ति थी, जिस का श्रीगणेश यूरोप में पन्द्रहवीं शताब्दी में ही प्रारम्भ हो गया था। इसके अतिरिक्त अपनी कूटनीति १२