पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/८८

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बहुत रोना पीटना किया–पर तुरन्त ही गोलियों से छलनी होकर तीनों के शरीर धूल में लोट गए। सारी सेना में सन्नाटा छा रहा था। लाशें तुरन्त वहाँ से हटा दी गईं। तब होल्कर ने मीर मुन्शी को तलब किया । मुन्शी के आने पर उसने हुक्म दिया-"अंग्रेजों के गवर्नर जनरल को हमने एक खत लिखा था-वह खत तुम मेरे इन सब मित्रों को और सेना को सुना दो।' मीर मुन्शी ने खत पढ़ा:-"मित्रता का सम्बन्ध पत्रों के आने-जाने अथवा एक दूसरे की ओर रिवाजी पादर सत्कार दिखाने पर निर्भर नहीं है । उचित यही है कि परिणाम को अच्छी तरह सोच समझ कर आप पहले मुझे यह सूचना दीजिए कि आप सब झगड़ों को तय करने, प्रजा की सुख- शान्ति में बाधा न पड़ने देने और "मित्रता कायम रखने के लिए किन उपायों की तजवीज करते हैं। ताकि उसके बाद मैं आप के पास एक ऐसा विश्वस्त आदमी भेज सक, जिसे दोनों पक्ष वाले मंजूर करलें । आप के प्रेम पर हर तरह विचार करते हुए, कम्पनी अथवा उसके सन्बन्धियों की ओर से मेरे दिल में किसी तरह के शत्रुता के विचार नहीं हैं। हमारी इस मित्रता को बढ़ाने के लिए आप भी अपनी ओर से प्रेम पत्र भेजने की मुझ पर कृपा कीजिए।" पत्र समाप्त करके मीर मुन्शी ने होल्कर को ओर देखा जो इस समय शान्त स्थिर खड़ा था। उसने कहा-"अब अंग्रेज़ गवर्नर का जवाब भी सुना दो मीर मुन्शी ने पढ़ा-"पाप की माँगें बे-बुनियाद हैं । और आप को मालूम होना चाहिए कि अंग्रेज़ सरकार ने हिन्दुस्तान के अथवा दक्षिण की किसी भी रियासत के साथ अपने राजनैतिक सम्बन्ध में इस तरह की माँगें आज तक कभी मंजूर नहीं की। और इस तरह की माँगें सुनना भी अंग्रेज सरकार की ताक़त और शान के खिलाफ़ है।" मीर मुन्शी जब खत पढ़ चुका तो एक बार होल्कर ने अाँख उठा कर चारों ओर देखा। उस समय सैनिकों के मुंह क्रोध से तमतमा रहे