नहीं है । बलिदान की पुरानी तल- वार के स्थान पर मनुष्य ने अपना सारा बुद्धिबल खर्च कर के एक से एक बढ़कर खूनी हथियार इस देवता को नर-बलि से सन्तुष्ट करने को बनाए हैं। रोज़-रोज़ मनुष्य का ताज़ा रक्त इस देवता को चाहिए । जो सब से अधिक नर-वध कर सकता है, वही सब से अधिक इस देवता का वरदान प्राप्त कर सकता है। यह हत्यारा देवता शायद संसार के सारे नृवंश को खा जायगा । एक भी आदमी के बच्चे को जीता न छोड़ेगा।
यह खूनी देवता यूरोप में उत्पन्न हुआ, और वहाँ से अंग्रेज़ उसे भारत में अपने साथ लाए। पाश्चात्य संस्कृति ने इस देवता को जन्म दिया था। उसकी नींव ग्रीकों ने डाली थी। मिस्र और बेबिलोनिया के प्राचीन साम्राज्यों के नष्ट होने पर जब ग्रीकों का उदय हुआ तो उस में सर्वप्रथम सार्वभौम राजा की पूजा खत्म कर दी गई। इससे वहाँ के मध्यम वर्ग के अधिकार बहुत बढ़ गए और कला-कौशल और तत्व-ज्ञान में वे अपने काल की सब जातियों से बढ़ गए । रोमन विजेताओं ने ग्रीक दासों से ही कला-कौशल और तत्वज्ञान सीखे । बाद में रोमन प्रजातन्त्र का उदय हुआ, और उसके बाद यूरोप में ईसाई धर्म का उदय हुआ, और साम्राज्य का नेला पोप बन