पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/७९

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गद् वाणी से ये शब्द कहे। तो सुन कर बेगम पर्दे में कुछ देर खामोश बैठी रहीं। 6 चौधरी ने कहा- बहुत देर सन्नाटा रहा—फिर बेगम ने मन्द स्वर में कहा- चौधरी, मैं अपनी चार पल्टने होल्कर सरकार को दूंगी-बशर्ते कि भरतपुर दरबार अपनी बात से न फिर जाय और लाहौर दरबार भी श्रीमन्त को साथ दे।" “यह काफी नहीं है, सरकार नवाब बब्बू खाँ और नवाब गुलाम मुहम्मद खाँ-हुजूर की बात को नहीं टालेंगे। आप उन पर भी दबाव डालिए।" "खैर, मैं एक खत नवाब बब्बू खाँ के नाम आपको दूंगी। लेकिन वह शख्स कम जर्फ हैं। उसका भरोसा नहीं । हाँ, नवाब गुलाम मुहम्मद खाँ कांटे का आदमी है। उसके पास मैं खुद पैग़ाम भेज दूंगी। लेकिन आप यदि सहारनपुर जा रहे हैं तो इस बात का ध्यान रखिए कि वहाँ के सभी गूजर सरदार श्रीमन्त का साथ दें। यह बड़ी बात होगी चौधरी।" "मैं पूरी कोशिश करूँगा सरकार और सब बात श्रीमन्त से करूँगा।" "एक बात और, जब तक वक्त न आए, सब बातें पोशीदा रहें । तथा श्रीमन्त इस बात का ध्यान रखें कि मेरे इलाके में मराठे कुछ नुक- सान न करने पाएँ।" "ऐसा ही होगा हुजूर।" "तो खुदा हाफ़िश, अब आप तशरीफ़ ले जा सकते हैं।" वेगम ने इत्रदान देकर चौधरी को विदा किया । चौधरी प्रसन्न मुद्रा में एक क्षण भी व्यर्थ न खो सहारनपुर की ओर चल दिये। नवाब बब्बू खाँ सहारनपुर के नवाब बब्बू खाँ अपने दीवान खाने में मसनद के सहारे लेटे मुश्की तम्बाकू का मज़ा ले रहे थे । और पानों की गिलौरियाँ ८२