पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/७५

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का जाल सिखों पर फैलाया हो, उन्होंने एक अंग्रेज डाकू को, जिसका नाम जार्ज टामस था, शह दे रखी थी। वह अकेला पठानों के सवारों का एक दल लेकर सिख रियासतों में लूटमार करता और उन्हें दिक़ करता रहता था। अभी तक भी होल्कर का आतंक अंग्रेज़ों पर था। उसने निरन्तर अंग्रेजों को हार दी थी। अंग्रेज़ों की अच्छी सेना और अफसर जसवन्तराय की तलवार का पानी पी चुके थे। अंग्रेज अफसरों ने जिन उपायों से सिंधिया और भोंसले को परास्त किया था उनका होल्कर के विरुद्ध प्रयोग अभी नहीं हुआ था। छल-कपट और जालसाज़ी को यदि एक ओर रखा जाय तो युद्धकौशल और वीरता में अभी भी अंग्रेज़ भारतवासियों के सामने टिकने के योग्य न ये। अंग्रेज़ जसवन्तराय के नाम से चौंक उठते थे, और चिढ़ कर उसे डाकू, हत्यारा और लुटेरा कहते थे। उन्हें अब यह भय दीखने लगा था कि यदि होल्कर को कुचला न गया तो तमाम भारतीय नरेश ही उनका साथ छोड़ देंगे। इसलिए अंग्रेज़ होल्कर के संगी-साथियों को फोड़ने में जी-जान से लगे हुए थे । दुर्भाग्य था कि उन्हें उसमें सफलता मिलती जा रही थी। इन्हीं सब बातों पर विचार कर भाऊ ने सोच-समझ कर चौधरी को समरू बेगम के पास भेजा । और हिदायत कर दी कि बेगम से जैसा कुछ समझौता हो—वह सहारनपुर जाकर होल्कर को बता दें । भाऊ ने अपने इस प्रयास की सूचना होल्कर के पास भी भेज दी थी। चौधरी ने सरधने जाकर बेगम से मुलाक़ात की। बेगम की आयु इस समय साठ से ऊपर थी । परन्तु वह सख्त पर्दे में रहती थी। पर्दे ही में से उसने चौधरी से बातचीत की। चौधरी ने कहा-"मैं श्रीमन्त होल्कर की आज्ञा से आया हूँ। श्रीमन्त ने कहलाया है कि आप हमारे सामन्त हैं। सुखदुःख में एक हैं । अब इन फिरंगियों को मुल्क से खदेड़ बाहर करने में आप हमारी मदद कीजिए।" ७८