"तो मैं तुम्हारे गुमाश्ते की प्रतीक्षा करूँगा। अफियाँ वही लायगान।" "वही ले पाएँगे। तथा जो-जो जिन्स जितनी चाहेंगे-बता देंगे।" "क्या फिक्र है, चौधरी के हुक्म से मैं बाहर नहीं हूँ। कह देना।" "तो साहू, अब मैं चला।" "राह में हुशियार जाना रे भाई।" रामपाल उठ खड़ा हुआ और चालाक बनिए से विदा होकर उसी पिछवाड़े की खिड़की से बाहर निकला । घोड़े पर तेजी के साथ डेरे की ओर चला। वार भाऊ की अोर चौधरी स्नान-पूजा से निबट कर पुत्र की प्रतीक्षा में बैठे थे। राम- पाल ने उनके पास पहुँच कर कहा- "बन्दोबस्त हो गया है दाऊ, पर साहू पूरा घाघ है । बहुत समझाने- बुझाने से वह रसद देने को राजी हुआ है। मगर भाव बहुत मंहगे बताता है तथा रुपया अफियों में पेशगी माँगता है। एक शर्त उसकी यह भी है कि राह में रसद लुट जाय तो वह ज़िम्मेदार नहीं है ।" "क्या भाव बहुत मँहगे हैं ?" "जी, गेहूँ रुपए का ढाई मन और चना साढ़े तीन मन के हिसाब से देगा।" "गुड़ और शक्कर ।" "गुड़ सवा मन और शक्कर छत्तीस सेर देता है।" "धान, बाजरा और माश भी चाहिए।" "धान रुपए का सवा दो मन, बाजरा साढ़े तीन मन, और माश रुपए का पौने दो मन देता है।"
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