पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/५६

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जाता है, पर उन दिनों ऐसा न था। अतः बहुधा उस काल के सेना- नायक गवर्नर जनरल से सलाह मशवरा करते रहते थे, और राजाओं से सिंधिया और युद्ध की सम्पूर्ण योजनाओं पर विचार विमर्श भी करते रहते थे। इस समय भी अंग्रेज़ों की बहुत-सी सेना दक्षिण में फंसी पड़ी थी। बम्बई उन दिनों अंग्रेज़ों का सबसे बड़ा सैनिक अड्डा था। आजकल बम्बई के जिस भाग को फोर्ट का इलाक़ा कहा जाता है, वहाँ तब एक बड़ी चहार दीवारी बनी हुई थी, जो मुकम्मिल नहीं थी और उसके बीच में होकर ज्वार के समय समुद्र का पानी गलियों और सड़कों पर भर आता था । इतनी दूर से सेना को लाना इस समय कठिन था, क्यों कि अंग्रेज़ जानते थे कि मार्ग में उन्हें रसद और चारा क़तई मिलना संभव नहीं है । इसके अतिरिक्त उन्हें यह भी भय था कि यदि अंग्रेज़ी फौजें चांदौर से आगे बढ़ी तो पेशवा और निज़ाम के इलाकों में पचासों होल्कर खड़े हो जाएंगे तथा नर्वदा और ताप्ती के बीच की पहाड़ियों से निकल सकना उनके लिए दुष्कर हो जाएगा। जसवन्त राय होल्कर के विरुद्ध इस समय सब से अधिक दौलतराव सिंधिया और उसकी सबसीडीयरी सेना की सहायता पर अंग्रेज निर्भर थे। अंग्रेज़ों ही की कूटनीति से ही इन दोनों प्रबल और समर्थ मराठा सरदारों में मन मुटाव और अविश्वास पैदा हो गया था। अब भी अंग्रेज़ इस भाव को बढ़ाने ही की जुगत में रहते थे। पर इस समय अंग्रेजों के पद-पद पर विश्वासघात और वादा खिलाफी से सिंधिया झुंझलाया बैठा था । अंग्रेजों ने उसके साथ खुली सीनाजोरी की थी। अंग्रेजों ने भरत- पुर के राजा को भी गाँठना चाहा था-पर वह पहले ही से अंग्रेजों से जला-भुना बैठा था। इसके अतिरिक्त उसके इलाकों के चारों ओर अंग्रेज़ों के अत्याचारों से त्राहिमाम् त्राहिमाम् मचा हुआ था। यों तो तमाम द्वाबे में ही-जहाँ अंग्रेज़ कम्पनी की अमलदारी थी, एक ही दशा थी। वहाँ की प्रजा और जमींदारों से खूब निर्दयता से कर वसूला जाता ५६