बहाता हुआ चला गया । बड़े मियाँ देर तक पेचबान में कश लगाते रहे। फिर सो गए। चौधरी चौधरी बीमार थे। दिल्ली के कोई हकीम उनका इलाज कर रहे थे। उन्हें जब बड़े मियाँ की आमद की सूचना दी गई तो उन्होंने उन्हें अपने पलंग के पास ही बुलवा लिया। छोटे मियाँ को देख कर चौधरी खुश हो गए । साहेब-सलामत के बाद चौधरी ने कहा- "पाप को मैं याद ही कर रहा था । शायद अाजकल में आदमी भेज कर बुलवाता ।" "तो आप ने तो खबर भी नहीं दी, इस क़दर तबियत खराब हो गई । अब इन्शा अल्ला ताला जल्द सेहत अच्छी हो जायगी, मगर अह- तियात शर्त है । हकीम साहेब क्या फ़र्माते हैं ? आदमी तो लायक मालूम देते हैं।" "जी हाँ, बीस सालों से मेरे यहाँ वही इलाज करते हैं । हज़रत बादशाह सलामत के भी ये ही तवीब हैं । हकीम नज़ीर अली साहेब ।" 'जानता हूँ । आलिम आदमी हैं। सुना है बड़े नव्वाज़ हैं।" "लेकिन वे इलाज ही तो कर सकते हैं, ज़िन्दगी में पैबन्द तो लगा नहीं सकते।" "यह आप क्या फ़र्मा रहे हैं।' "बस, यह मेरा आखिरी वक्त है । इस गिर्दोनवा में सिर्फ एक आप मेरे हमदर्द हैं । बिटिया सयानी हो गई है, इसके हाथ पीले हो जाते तो इतमीनान से मरता । अब, भगवान् की मर्जी ।" "लेकिन चौधरी, आप इस कदर पस्त-हिम्मत क्यों हो रहे हैं । आप जल्द अच्छे हो जायंगे।" "खैर, तो आप से मेरी एक आरजू है, आप मेरे बड़े भाई हैं । अब 11
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