हक्का-बक्का हो गए। उन्होंने सिपाहियों को घेर लिया और मार-मार करते ठोकर के पीछे भागे। इसी समय चौधरी ने बन्दूक की एक बाढ़ दागी - हाबूड़े रुक गए । अब ठोकर उनके पहुँच से बाहर थी दो तीन मील का सफ़र तै करने के बाद रघुवीर ने बैलों को धी किया । बैल फेन उगल रहे थे, उसने उन्हें थपथपाया। फिर कहा -"त हैं, कि गए।" रघुवीर आश्वस्त हुआ । उसने कहा, मैं लौट कर देखंगा । इन हाबूड़ो की सिरकियों में दो बार मैं आग लगा चुका हूँ। लेकिन फिर ये इस जंगल में आ पड़े। बेचारे रघुवीर को और सुरेन्द्रपाल को क्या पता था कि उनके पीछे मुक्तेसर पर तबाही आ चुकी है। और अब उन में से कोई भी वापस मुक्तेसर नहीं लौट सकता। अभी पहर दिन शेष था कि सुरेन्द्रपाल मेरठ जा पहुँचा । यहाँ उसने उड़ती हुई खबर सुनी कि मुक्तसर में हंगामा हो गया है, और सरकारी आदमियों का क़त्ल हो गया है, परन्तु अभी यह अफवाह ही थी। फिर भी ठाकुर रघुराजसिंह ने उन्हें अपने घर में न रख कर एक दूसरे स्थान पर डेरा दिया और समझाया कि अभी जब तक मुक्तेसर की पूरी खबर न आ जाय वे चुपचाप बैठे।
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मेरठ की जेल में मेरठ की जेल में बड़े मियां और चौधरी मिले । पर चौधरी उस समय विक्षिप्तावस्था में थे। उन्होंने बड़े मियाँ को नहीं पहचाना । छोटे .. चौधरी ने रोते-रोते सारा किस्सा बड़े मियाँ को सुनाया। सुन कर बड़े मियाँ ने अपनी डाढ़ी के बाल नोच लिए। उन्हें अभी यह ज्ञात न था-- २६८