हाथी पर चढ़ कर भाग चले। पर सैंकड़ों आदमियों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया । अंग्रेज़ अफ़सर के मरने पर सिपाही मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए। चौधरी ने घेर कर तहसीलदार और चकलेदार को हाथी से खींच कर ठौर मार डाला । और भी सरकारी सिपाही मारे गए। शेष भाग गए। मुर्दो को घसीट कर बीच चौक में डाल उन्हे फूंक दिया गया । हाथी को पीट कर भगा दिया गया । मरे हुए सिपाहियों की बन्दूक और हथियार लूट लिए गए। बड़े चौधरी ने सुना तो वह सक्ते की हालत में देर तक पड़े रहे । फिर उन्होंने छहों बेटों को बुला कर कहा- "काम बहुत बुरा हुआ । अब जो कुछ इसका परिणाम होगा मैं देखूगा । पर तुम लोग स्त्रियों को ले कर पंजाब की ओर भाग जायो। महाराज रणजीतसिंह हमारी मदद करेंगे पर किसी ने भी भागना स्वीकार नहीं किया। सबने कहा, जो भोगना होगा सभी भोगेंगे । चौधरी हताश भाव से पलंग पर गिर गए। चौधरी बड़े दीर्घदर्शी थे। उन्होंने बड़ी दुनिया देखी थी । कत्ल और लूट के संगीन जुर्म उनकी आँखों में थे । कम्पनी के राज्य की अंधेरगर्दी वह जानते थे। इस बुढ़ापे और रुग्णावस्था में वे अपने पुत्र का जख्म तो खा ही गए, भावी विपत्ति जैसे मुँह बा कर उनके समूचे सौभाग्य को ग्रसने को तैयार हो गई थी। रामपाल बहुत सुयोग्य पुरुष था। इस समय वही घर-बार का स्वामी-और कर्ता-धर्ता था । सब भाई उसे मानते थे। वह धीर- वीर गम्भीर था। उसका अन्याय पूर्वक ही वध हो गया। यद्यपि काफ़ी बदला लिया जा चुका था--पर चौधरी के लड़ के सब बफरे शेर की भाँति दहाड़ते फिर रहे -वे अब भी मरने मारने पर तुले हुए फास्टर पर गोली विजयपाल ने चलाई थी। उसे बहुत लोगों ने देखा था । इसलिए चौधरी ने बहुत अनुनय-विनय की-कि वह औरतों को तथा धन सम्पत्ति को ले कर पंजाब भाग जाए। महाराज रणजीतसिंह उसे मदद देंगे । पर उसने एक न सुनी । उसने कहा-मैं भागूंगा नहीं। इन फ़िरंगियों से निबटूंगा अच्छी तरह । अब चौधरी को असल विपत्ति
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