आगे-पीछे हो गया। रामपालसिंह ने दूर ही से देखा कि बाजार में लाठियाँ खिची हुई हैं । इसी समय उसे बन्दूक की आवाज़ सुनाई दी। रामपाल के कुछ साथी ठिठक गए। कुछ और तेजी से आगे बढ़े । इसी समय दो-चार आदमी भागते आए--वे कह रहे थे--वहाँ तो लाशें फड़क रही हैं चौधरी, वहाँ मत जायो। पर रामपाल ने तीर की भाँति अपना घोड़ा छोड़ दिया । कम्पनी की फौज़ के अफसर फास्टर ने ज्यों ही रामपालसिंह को एक भारी गिरोह के साथ आते देखा, पिस्तौल दाग़ दिया । गोली रामपालसिंह की कनपटी को फोड़ कर पार हो गई । राम- पालसिंह वहीं मर कर ढेर हो गए। बड़ी भारी दुर्घटना हो गई। बाजार में भगदड़ मच गई । बड़ा हो- हल्ला मचा । क्षण भर ही में यह खबर गढ़ी में पहुँच गई । गढ़ी और हवेली में हाहाकार मच गया। सुखपाल, किशोरपाल और विजयपाल, नरेन्द्रपाल और यशपाल बन्दूकें उठा, लोगों को ललकारते हुए नंगी पीठ घोड़े पर चढ़ दौड़े । बूढ़े चौधरी रोकते ही रहे । सेवाराम ने पीछे से हाँक लगाई और अपनी तलवार सूंत ली । उसने कहा--चलो आज इन फिरं- गियों का खून पिएँ । अरे, मालिक ठौर ही गए, सेवक के जीवन को धिक्कार है। देखते-ही-देखते चार-पाँच सौ आदमी गंडासे, भाले, सुर्सी, लाठी, तलवार ले लेकर दौड़ पड़े। बाजार में इस समय लाशें फड़क रही थीं। लोग चारों तरफ़ भाग रहे थे। अब चौधरियों को धावा करते देख, हर-हर महादेव करते-सब लोग लौट चले । चौधरियों के सिर पर खून सवार था । वे हवा में उड़े जा रहे थे। सेवाराम लोगों को ललकारता, बढ़ावा देता उनके पीछे-पीछे तलवार घुमाता दौड़ रहा था । चारों ओर से सिमट-सिमट कर लोग उन के साथ हो लिए। उन्होंने तहसीलदार और चकलेदार को घेर लिया। मेजर फास्टर घोड़े पर एक ऊँचे स्थान पर खड़ा अभी अपने सिपाहियों को पंक्तिबद्ध कर ही रहा था कि विजयपाल की गोली उसके सीने से पार हो गई । वह घोड़े से गिर पड़ा। यह देख चकलेदार और तहसीलदार २६१
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