पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२८३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रास्ता पश्चिम की ओर जाता था । जहाँ चौधरी की कचहरी-बैठकखाना और दरबारघर था। इसी के एक छोर पर जनानखाना था। जिस के बीच बड़ा सा आंगन था। उस के पिछवाड़े घरेलु नौकर, दाइयाँ, और महरियों के रहने का स्थान था। नया बाज़ार इन दिनों खूब गुलज़ार रहता था। गुड़ और गल्ले की अच्छी मण्डी थी। उस दिन बाजार का खास दिन था। बाहर के व्यापारी और ग्राहक भी आस-पास के ग्रामों से आए थे । इन व्यापारियों के जिन्सों के ढेर सड़कों पर पेडों की छाया में लग रहे थे, लोग झुण्ड के झुण्ड जहाँ- तहाँ खडे अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीद रहे थे। तीसरे पहर का समय था कि कुछ लोग बदहवासी की हालत में भागते हुए बाज़ार में आए-और कहने लगे -भागो-भागो, कम्पनी बहादुर का चकलादार बहुत से वरकन्दाजों और अंग्रेजी फौज सहित इधर ही आ रहा है। वह सब से टैक्स वसूल कर रहा है । नयागांव लूट लिया गया है । और बड़े मियां गिरफ्तार हो गए हैं। अब वे मुक्तेसर आ रहे हैं । जो पाते हैं, वही समेट लेते हैं । अपना-अपना सामान लेकर भागो-भागो। बाज़ार में भगदड़ मच गई । जिसका जिधर मुंह उठा भाग निकला। पर जिनका सामान फैला हुआ था-वे हक्का-बक्का एक दूसरे का मुँह देखने लगे। कुछ ने कहा--भाग कर कहाँ जाएं, जिन्स-सामान कहाँ ले जाएं। यह तो बड़ी मुसीबत की बात हुई । परन्तु अभी ये बातें हो ही रहीं थीं कि कम्पनी का चकलादार मुहम्मद इकरामखां और हापुड़ का तहसीलदार हाथी पर सवार आ बरा- मद हुए। इनके साथ मेजर फास्टर के साथ एक हथियारबन्द फौज भी थी। इस के अतिरिक्त बहुत से सिपाही और वरकन्दाज़ थे । इस फौज ने देखते-देखते ही बाजार को चारों ओर से घेर लिया। तहसीलदार ने हाथी ही पर से हुक्म दिया--चकलादार, तुम सब से सरकारी टैक्स वसूल करो। चकलादार मुहम्मद इकरामखां इस काम में बहुत्त होशियार और २८७