मरने-मारने को तैयार हो गए। बेगम ने महल में प्रवेश किया। पाटन साहब ने पालकी पकड़ ली। बेगम के सिपाही तलवार लेकर उन पर टूट पड़े। पाटन साहब घोड़े पर चढ़ कर रेजीडेंसी भाग गए । बेगम ने मन्नाजान को दरबार में जाकर तख्त पर बैठा दिया। तत्काल ही महल में जश्न होने लगे। परन्तु सूर्योदय के साथ ही अंग्रेज़ी सेना ने महल को घेर लिया और हुक्म दिया कि यदि बादशाह-बेगम पाँच मिनट में महल से बाहर न निकली तो अंग्रेज़ी सेना महल पर गोले बरसाएगी। बेगम ने कुछ ध्यान नहीं दिया। अब महल पर गोले बरसने लगे। देखते-ही-देखते बेगम के पांच सौ सिपाही मारे गए । जो बचे वे भाग खड़े हुए। अंग्रेज़ी सेना के कमाण्डर ने भीतर घुस कर मन्नाजान को रस्सियों से बाँध लिया । एक मेहतरानी बादशाह-बेगम को पकड़ कर रेजीडेन्सी ले चली। सारा लखनऊ देख रहा था। बेगम और मन्नाजान चार दिन रेजी- डेन्सी में कैद रहे। फिर उन्हें कैदी ही की हालत में कानपुर भेज दिया गया। इसके बाद अंग्रेजों ने वृद्ध नवाब मुहम्मद अली को सिंहासन पर बैठा कर उन्हें अवध का बादशाह घोषित किया । बादशाह बन कर उन्होंने सब पुराने राज-कर्मचारियों को पदच्युत कर दिया । केवल हकीम महदी अली खाँ प्रधानमन्त्री बने रहे। पुराने घरानों का खात्मा उस समय मुग़ल बादशाहों और दूसरे हिन्दू राजा रईसों की ओर से हजारों घरानों को और हजारों धार्मिक और शिक्षा सम्बन्धी या समाज- २८२
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