वह बैरनट न बन सका । जिस-जिस कारोबार में उसने रुपया फँसाया- उसी का दिवाला निकल गया। धीरे-धीरे उसका सब धन नष्ट हो गया। और वह चार ही पाँच वर्षों में छुछु हो गया। एक बार उसने फिर लंदन में नाई का धन्धा चलाना चाहा--पर वह भी न चला और अन्त में बुरी तरह उसकी मौत हुई। नाई के लखनऊ से चले जाने पर नसीरुद्दीन की सारी दिल्लगी का सामान खत्म हो गया और वह बीमार हो गया। उसे यह भय हो गया कि उसे सब लोग जहर देकर मार डालना चाहते हैं । खाना सामने लाने पर वह उसे गुस्सा करके फेंक देता था और बड़ी देर तक बड़बड़ाया करता था। उसे किसी पर विश्वास न था। बहुधा वह साधारण सिपा- हियों को बुला कर उनसे बाजार से चना-चबेना मंगा कर खाता । उनसे कस्में लेता कि कहीं उन्होंने जहर तो नहीं मिला दिया है। रंगमहल में इन दिनों अनेक दल बन गए थे-सब एक दूसरे से षड्यन्त्र रच रहे थे। महदीअली ने अपना दल अलग बना लिया था। बादशाह बेगम और बेगम आलिया का दल अलग था। जनाब बेगम आलिया को लड़-झगड़ कर उसने फैजाबाद भेज दिया था । मन्नाजान अब बादशाह बेगम के पास था। उन्होंने उसे अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था। परन्तु बादशाह ने घोष द्वारा प्रचारित कर दिया था कि मन्नाजान मेरा बेटा नहीं है । उसे मैं गद्दी का वारिस बनाना नहीं चाहता। इस वक्त एक बांदी अशरफ उसकी खिदमत में रहती थी। अब वह बहुत कम बाहर निकलता था। १८३७ को जुलाई को तीसरे पहर गर्मी से घबरा कर बादशाह ने शर्बत मांगा, अशरफ ने शर्बत ला दिया। शर्बत पीने के आधा घन्टे बाद बादशाह छटपटाने लगा। बाँदियाँ, लौंडियाँ शोर मचाने लगीं। तुरन्त हकीम मिर्जा अली की तलबी हुई। मिरज़ा अली ने देख कर कहा- "बादशाह ने जहर खा लिया है।"
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