पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२७१

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"एक लाख ?" “और तीस लाख रुपया दूसरे समारोहों में ।" "लेकिन मेजर, तुम तो कहते हो कि शाही खजाना बिल्कुल खाली है, फिर इस क़दर फिजूलखर्ची ?" “योर एक्सीलेन्सी, इन बदनसीब हिन्दुस्तानी नवाबों और बादशाहों की तबाही और मौत का मूल कारण आपके इस प्रश्न का जवाब है।" "तो मेजर, तुम बादशाह को आगाह कर दो कि मैं इन सब लान- तान और खेल तमाशों में कोई हिस्सा न लूंगा। सिर्फ कल दरबार करूँगा, जहाँ बादशाह से मुंह-दर-मुंह बातचीत करूँगा। तुम अभी बादशाह से मिल कर कुल इन्तजाम ठीक कर लो।" "बहुत अच्छा योर एक्सीलेन्सी, मैं आप की आज्ञा अभी पालन करता हूँ। लखनऊ का दरबार गवर्नर-जनरल के स्वागत समारोह के लिए नसीरुद्दीन हैदर ने बड़ी धूम-धाम की तैयारी की थी। उस में चालीस लाख रुपये खर्च हुए थे। डेढ़ लाख से ऊपर रुपया तो दावत ही के मद्दे खर्च किया गया था, जिसका प्रबन्ध अंग्रेज़ नाई सरफ़राज खाँ के सुपुर्द था-एक लाख रुपया नाच- मुजरे और रंडियों के खर्च किए गए थे-और काश्मीर तक से रंडियां बुलाई गई थीं। हाथी-ऊँट, सिंह, तीतर-बटेर, मुर्ग-गैंडे आदि पशु-पक्षियों की लड़ाई के लिए भारी खर्च करके अनेक पशु मंगा कर शिक्षित किए गए थे। एक सौ हाथी, चार सिंह, चौदह बाघ, दस गैंडे, तीस जंगली भैंसे, सात ऊंट, दस भालू तथा अनगिनत अन्य पशु-पक्षी एकत्र किए गए थे। गवर्नर-जनरल महोदय के आने से महीनों पूर्व से बादशाह और उनके अंग्रेज़ पार्षद सब काम छोड़ इन्हीं पशुओं के युद्धों-शिकारों और २७५