पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२६३

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बेच कर एक बड़ी रकम वसूल कर विलायत में दूसरी शादी करने की फिक्र में है।" "खुदा की पनाह, सुना कि इस ग्वाला जान का मुल्के-जमानिया ने सरेआम बोसा लिया।" "लाहौल बलाकू तो शायद उसी की कीमत पचास हजार का पन्ने का कण्ठा उसे इनायत किया गया है।" "उस कण्ठे ही पर क्या मुनहसर है।" "राजा साहब, इसी माह में मेजरवेली ने पचहत्तर लाख का कम्पनी का काग़ज खरीदा है । यह रुपया क्या उस दोज़खी ने कीमिया से बनाया है । सब लूट ही का तो माल है।" "तो हजरत आप हमें नाहक गुनहगार बनाते हैं । मुल्क को तो ये सफेद डाकू लूट रहे हैं । उस हरामजादे हज्जाम ही को लो, पचास लाख रुपया नक़द उसके पास है।" "और अब वह इन सब का सरताज आ रहा है । खुदा खैर करे।" "तो नवाब साहब अच्छे और बुरे में हम एक हैं।' 'यकीनन, खुदाहाफिज ।" दोनों ने हाथ मिलाए-अाँखें मिलाई और राजा साहब विदा होकर चल दिए। लार्ड विलियम वैटिक लार्ड विलियम बैंटिंक लखनऊ की रेजीडेन्सी में एक ईजी चेअर पर शाम की हल्की पोशाक पहने आराम फ़र्मा रहे थे। उनके हाथ में फ्रांस का कीमती चुरुट था, जिस की सुगन्ध बहुत ही खुशगवार थी। अभी उनका कोई प्रोग्राम नहीं बना था। लखनऊ आए यद्यपि तीन दिन बीत चुके थे-परन्तु उन्होंने अभी न तो किसी रईस से मुलाक़ात की थी न किसी सार्वजनिक जलसे में शरीक हुए थे। बादशाह तक से २६७