"ऐसा ही होगा योर मेजस्टी, मैंने पूरा इन्तज़ाम किया है।" "ठीक है नवाव आग़ा से रुपये ले लो।" बादशाह ने काग़ज पर दस्तखत कर दिए। नाई काग़ज समेटता हुआ बादशाह को लम्बी सलाम कर वहाँ से चला गया। बादशाह फिर क्लेरेट पीने लगे। शाही लंच में अभी देर थी।
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शाही नज़र आगामीर हिसाब देखते ही जल गए। उन्होंने काग़ज दूर फेंक कर कहा-“लूट है लूट, इतना रुपया नहीं दिया जा सकता।" "लेकिन बादशाह के दस्तखत । रुपया अभी इसी वक्त देना होगा।" "कहाँ से देना होगा । खजाने में एक पाई भी नहीं है।" "तो क्या तुम बादशाह की हुक्म-उदूली करते हो ?" नसीर के वज़ीर आज़म का नाम मोतमिद्उद्दौला था । पर वे सर्व- साधारण में आगामीर के नाम से प्रसिद्ध थे। अयोध्या के राजा रामदयाल दीवान थे। पिछले साल जो कम्पनी बहादुर को करोड़ रुपया कर्ज दिया गया था और दूसरे शाही खर्चे पूरे किए गए थे-उस से शाही खजाने का सब रुपया खर्च हो चुका था। रियासत के दूसरे ज़रूरी खर्चे पूरे करने के लिए प्रजा पर घोर अत्याचार करके आगामीर और राजा रामदयाल को राज-कर वसूल करना पड़ा था-पर साल खत्म होने ही से पहले वह रुपया भी खत्म हो गया था। अत्याचार से तंग आकर बहुत सी प्रजा अपने गाँव, खेत छोड़ नेपाल की तराई में जा बसी थी। सैंकड़ों सद्गृहस्थ और किसान अपना काम-धन्धा छोड़ कर ठगी और चोरी -~या डाके की वृत्ति धारण कर चुके थे। २६०