भी बादशाह की रक्षा के लिए गई। शिकार की योजना पर बीस हजार रुपया खर्च किया गया। बादशाह ने डेरे में पहुंच कर तीन दिन आराम किया । इन तीन दिनों तक वह विलायती शराब पीता और उम्दा विलायती खाने खाता तथा अपने विलायती मुसाहिबों से विलायती शिकारों के झूठे-सच्चे किस्से सुनता रहा। चौथे दिन बादशाह का मूड ठीक हुआ तो शिकार को निकला। उसके फिरंगी मुसाहिबों ने चिड़ियों का शिकार किया । बादशाह को भी बन्दूक दी गई । उसने आंख बन्द करके बन्दूक चला दी। थोड़ी ही देर बाद अहमद. ख्वाजा दस पन्द्रह पक्षियों को लिए हंसते हुए पाया और बोला-“सुभान अल्लाह, मुल्के-जमानिया की बन्दूक से इतने जानवर मरे हैं।" एक ही बन्दूक से इतने जानवरों को मरा देख बादशाह खुश हो गया । उस दिन बस और शिकार नहीं हुआ। आधी रात तक बादशाह के तम्बू में नाच-गाना मुजरा होता रहा । बादशाह की प्रसन्न मुद्रा देख हज्जाम खुश हो गया। आधी रात के बाद मजलिस बस्ति हुई। बादशाह सलामत अपनी ख्वाबगाह में सोने चले गए। पर इसी समय बड़ा ही हल्ला मचा। वहां क्या हो रहा है तथा शोर का कारण क्या है—यह कोई न जान सका। रात अन्धेरी थी, अतः कौन किस पर गोली चला रहा है इस बात का पता बादशाह को बिल्कुल न लगा। आधे घण्टे के बाद गोली चलना बन्द हो गया। और जनाने डेरों से रोने-पीटने की आवाजें आने लगीं। बाँदियों ने पा कर अर्ज़ की, जहाँपनाह, सारा जनाना लुट गया। डाकुओं ने धाड़ मारी और सब के जेवर-नक़दी माल-मता छीन ले गए। साथ में एक बेगम और तीन कमसिन लौंडियों को भी चोर ले गए। बादशाह ने बौखला कर उसी समय पालकियों और हाथियों को
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