वहाँ से खसक चुके थे। खवास ने मुश्की तमाखू भर कर रख दिया, बादशाह चुपचाप कश खींचने लगे। इसी वक्त प्रधान खोजा बदहवास दौड़ा हुआ आया, और बादशाह के कदमों में गिर कर बोला--मुल्के-ज़मानिया, गजब हो गया, नवाव वेगम हीरे की कनी खा गईं। और अब वे मर रही हैं।" बादशाह झपटते हुए महल में गए। बेगम चुपचाप जमीन पर पड़ी थी, उसके शरीर पर कोई अलंकार न था। एक बहुत मामूली अोढ़नी से उसका शरीर ढका था। धीरे-धीरे उसका रंग काला पड़ता जाता था--और शरीर ऐंठता जाता था। बादशाह ने उसके पास ज़मीन पर बैठ कर कहा- “यह तुम ने क्या कर डाला वेगम !" कुदसिया बेगम हंस दी। उसके दाँत और ओंठ काले पड़ गए थे । उसने कहा-मुल्के-जमानिया, एक वफादार बीवी, अपने शौहर की शक्की नज़र नहीं बर्दाश्त कर सकती। दुनिया में आपके जैसा प्यार करने वाला, सखी और नेकदिल-दरियादिल खाविन्द कौन हो सकता है, लेकिन एक रजील खानदान की ज़र-खरीद लौंडी पर शक करना प्राप जैसे वादशाह के लिए कुछ ज्यादा ऐब की बात सहीं। बादशाह को हमेशा इसी तरह चौकन्ना रहना चाहिए । वह फिर हंसी और एक हिचकी ली, उसीके साथ उसके प्राण पखेरू उड़ गए। नया माल नवाब कुदसिया वेगम के इस प्रकार अकस्मात् ही मर जाने से बादशाह नसीरुद्दीन को आघात लगा। वह उससे प्रेम करते थे। अभी उसकी आयु बीस बरस की भी न हुई थी । वह सुन्दरी तोथी ही, उसमें अनेक गुण भी २४६
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