पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुहम्मद अहमद उर्फ छोटे मियाँ मियाँ के इकलौते साहबजादे थे मियाँ मुहम्मद अहमद । उम्र इक्कीस साल । दिल्ली में पढ़ते थे। अंग्रेज़ी का शौक था। अंग्रेज़ी लिबास पहनते थे। इस समय ग़ाजी बादशाह अकबर शाह का अदल महज़ लाल किले ही तक सीमित था। बादशाह बड़े मियाँ को तो दोस्त की तरह मानते थे और छोटे मियाँ को बेटे की तरह। मुहम्मद अहमद अंग्रेजों के मिशन कालेज में पढ़ते थे पर बीच-बीच में बादशाह का मुजरा करने लाल किले में जाते रहते थे। इससे उनके हौसले ज़रा बढ़े हुए थे । अंग्रेजी पढ़ने और अंग्रेजों के सम्पर्क में रहने से उनके विचारों में भी बहुत क्रान्ति हुई थी। उम्न का भी तक़ाज़ा था। वे हर चीज़ को और हर बात को नई नज़र से देखते थे। धर्म-ईमान पर भी उनके विचार नए पन को लिए हए थे परन्तु इसके विपरीत बड़े मियाँ बिलकुल पुराने ढंग के न केवल रईस थे-वे पुराने ढंग के मुसलमान भी थे। रोज़े-नमाज़ के पाबन्द, और सच्चे खुदापरस्त । नेक और रहीम । बड़े आदमियों के सभी गुण उन में थे। लेकिन वे सब गुण बहुधा छोटे मियाँ को अखरते रहते थे। वे पिता की काफी इज्जत करते थे पर कभी-कभी बाप-बेटों में हुज्जत भी हो जाती थी। मियाँ ने घोड़ी साईस के हवाले की । और दीवानखाने में आ मसनद पर बैठ गए। मियाँ के दीवानखाने का अन्दाजा शायद आप न लगा सकें। आप के ड्राइंग रूम से बिलकुल जुदा चीज़ थी। मियाँ के मसनद पर बैठते ही मुहम्मद अहमद ने आ कर कहा-- "अब्बा हुजूर, मियाँ अमजद और वासुदेव पण्डत बड़ी देर से बैठे हैं।" "किस लिए ?" "वही, क़र्जा मांग रहे हैं। मियाँ अमज़द को तो कम्पनी बहादुर की . २६