की नमाज़ अदा करके घोड़ी पर सवार हो, खेतों पर चक्कर लगाने जाते। यह उनका नित्य का दस्तूर था । सर्दी के दिन, सुबह का वक्त । अभी पूरी धूप नहीं खिली थी, कोहरा छाया था, खेतों से वापस लौट रहे थे । कल्लू भंगी अपनी झोंपड़ी के आगे आग ताप रहा था और हुक्का गुड़गुड़ा रहा था । मियाँ ने घोड़ी रोक दी। बोले, "कल्यान मियाँ सर्दी बहुत है ।" कल्लू घबरा कर हुक्का छोड़ उठ खड़ा हुआ । उसने जमीन तक झुक कर मियाँ को सलाम किया । और हाथ बाँध कर कहा, "हाँ सरकार ।" “अमाँ, तुम्हारे पास तो कुछ ओढ़ने को भी नहीं है । लो, यह लो।" उन्हों ने अपनी कमर से लपेटा हुअा शाल उतार कर भंगी के ऊपर डाल दिया। भंगी ने घबरा कर कहा-“सरकार, यह क्या कर रहे हैं, इतना क़ीमती शाल यह गुलाम क्या करेगा, न होगा तो मैं गढ़ी में हाज़िर आ जाऊँगा । कोई फटा पुराना कपड़ा बख्श दीजिएगा।" लेकिन मियाँ ने भंगी की बात सुनी नहीं। उन्हों ने कहा- "अमाँ, कल्यान, तुम्हारी लड़की की शादी कब की रही ?' "इसी चौथे चाँद की है सरकार ।" "अच्छी याद दिलाई, मैं तो दिल्ली जाने वाला था, जहाँपनाह का पैग़ाम आया था। अब शादी के बाद ही जाऊँगा। मगर देखना, की तवाज़ा ज़रा ठीक-ठीक करना, ऐसा न हो भई, गाँव की तौहीन हो । तुम ज़रा लापरवाह आदमी हो । समझे।" "समझ गया सरकार ।" "जिस चीज़ की ज़रूरत हो छुट्टन मियाँ से कहना ।" "जो हुक्म सरकार।" मियाँ ने घोड़ी बढ़ाई । और कल्लू भंगी शाल को सिर से लपेटते हुए दूर तक मियाँ की रकाब के साथ गया। बारात २५
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