नाम से प्रसिद्ध थों। नसीर का इनसे भी मनमुटाव था और वह अनपी माता के महल में नहीं आता-जाता था। प्रसिद्ध था कि जनावे-आलिया बेगम कोई बड़े खानदान की लड़की न थीं तथा नसीरुद्दीन की उत्पत्ति पर गाजीउद्दीन को संदेह भी था। ग़ाजीउद्दीन जब नसीर को मरवा डालना चाहता था, तब आलिया-बेगम ने ही उसकी प्राणरक्षा की थी, परन्तु अब नसीर अपनी माँ से कभी मिलता तक न था। रंगमहल की हिफाजत के लिए एक अच्छी-खासी स्त्री सैन्य रहती थी। इस सेना में बहुधा नीच जाति की स्त्रियाँ भरती होती थीं। जो शराव पीतीं और दुराचारिणी भी होती थीं। ये स्त्रियाँ सिपाहियों का पहनावा पहनतीं, हथियार बाँधती तथा सिर पर पगड़ी बाँधती थीं। इनके दर्जे भी सेना के अफसरों की भाँति होते थे। सभी वेगमात के महल में स्त्री- सिपाही रक्षा पर तैनात रहती थीं। बादशाह बेगम के महल पर पचास स्त्री-सैनिक रहते थे, परन्तु जनाबे-प्रालिया के महल पर डेढ़ सौ स्त्री-सैनिकों का पहरा रहता था। हिजमैजस्टी बनने के बाद नसीरुद्दीन हैदर को दिल्ली के बादशाह ने बुलाया था। और नसीरुद्दीन ठाठबाट से दिल्ली के लालकिले में मेहमान थे होकर गए
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दिल्ली की गंडेरियाँ दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन के मजार पर उस दिन बड़ी भीड़-भाड़ थो। बेशुमार हिंदू और मुसलमान स्त्री-पुरुष वहाँ आए थे। बहुत प्रा रहे थे-बहुत जा रहे थे । मज़ार का विस्तृत सहन स्त्री-पुरुषों से भरा था। हाजतमंद लोग मज़ार पर आकर दुआ मुराद मांग रहे थे। प्रसिद्ध था, कि कोई जरूरत मंद इस औलिया की दरगाह से बिना मुराद पूरी किए वापस नहीं लौटता। उर्स का जुलूस था । बहलियों-रथों पालकियों और सवारियों का तांता लग रहा था । शानदार मजलिस २२२