चार का एक नमूना थी। गांवों की पंचायतों का नाश कर डाला गया था, और वहाँ के स्कूल तोड़ डाले गए थे। उनकी जगह कोई नए स्कूल कायम नहीं किए गए थे। तत्कालीन कम्पनी की सरकार दो करोड़ बीस लाख की आबादी में से सिर्फ डेढ़ सौ विद्यार्थियों को ही शिक्षा देती थी, जबकि भारत की टैक्सों की वसूली में से कम्पनी के डायरेक्ट इन दिनों में ५०००० पाऊंड से भी अधिक रकम केवल दावतों पर खर्च कर देते थे। सब बड़ी-बड़ी नौकरियां अब अंग्रेजों के लिए सुरक्षित रख ली गई थीं, और शासन में विश्वास और ज़िम्मेदारी के काम पर किसी हिन्दु- स्तानी को नहीं रखा जाता था। हक़ीकत तो यह थी कि भारतीय जो उस समय सुसभ्य जीवन के सब धन्धों में कुशल थे, अयोग्य, असहाय और नालायक कह कर सदा के लिए उसी देश में नीच बना दिए गए थे, कि जहाँ उनके पूर्वजों ने जगत प्रसिद्ध और अमर सांस्कृतिक जीवन व्यतीत किए थे, उन्हें ज़बर्दस्ती शराबी और दुराचारी बनाया जा रहा था । सन् ३३ के इस चार्टर एक्ट के पास होने के बाद अग्रेज़ बड़ी तेज़ी से रही सही देसी रियासतों को अंग्रेजी राज्य में मिलाने में व्यस्त थे । मराठा संघ टूट चुका था। उसका केन्द्र पूना अंग्रेज़ों के अधिकार में या गया था। पूना के महलों पर अंग्रेजों का झण्डा फहरा रहा था। पेशवा विठूर में कैदी था। सिंधिया और होल्कर के दम-खम खत्म हो चुके थे। राजपूत राजा अंग्रेज़ों की छत्र छाया में आ चुके थे। इस प्रकार भारत की प्रायः सब राजनैतिक शक्तियाँ या तो अंग्रेजों की प्रभुता को मान चुकी थीं-या उनकी मित्र हो चुकी थीं। रामेश्वरम् से लेकर दिल्ली तक के सभी मुख्य केन्द्रों में अंग्रेज़ी सेना की छावनियाँ छाई हुई थीं। और अब ब्रिटिश हुकूमत को हिलाना आसान न था । राजपूताने पर आँख जमाए रखने के लिए अजमेर अलग प्रदेश बना दिया गया था। जिस पर सीधा अंग्रेज़ अफ़सर शासन करता था। लार्ड हेस्टिग्स की विजय-वैजयन्ती अब भारत के इस छोर से उस छोर तक फहरा रही थी । पूना का छत्र- भंग करने के उपलक्ष्य में उसे कम्पनी के डायरेक्टरों ने साठ लाख पौण्ड
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