इंगलैंड के उद्योग-धन्धे और व्यापार ने ऐसी उन्नति कर ली-कि वह भारत का सम्राट बनने से पहले ही संसार का अर्थ सम्राट बन गया । देखते ही देखते इन बीस बरसों में इंग्लैंड में बड़े-बड़े समृद्ध नगर आबाद हो गए, और धन की ऐसी बाढ़ इंग्लिस्तान में आई कि लोगों के हौंसले बढ़ गए, परन्तु ज्यों-ज्यों इंग्लैंड की समृद्धि बढ़ी और प्रजा के अधिकारों की वृद्धि हुई, भारत की दरिद्रता और पराधीनता उतनी ही अधिक बढ़ गई । और यह एक निश्चित बात हो गई कि भारत की दरिद्रता में इंग्लिस्तान की समृद्धि और भारत को समृद्धि में इंग्लैंड को खतरा। ठीक ऐसे ही समय में सन् ३३ का नया चार्टर एक्ट बना, जिसके द्वार! भारत के ऊपर अंग्रेज़ी शासन का आर्थिक भार बहुत अधिक बढ़ गया । अंग्रेज़ों ने भारत से धन बटोरने के लिए बेहद कर बढ़ा दिए। ये बीस बरस और उसके बाद के भी बीस बरस भारत की अंग्रेज़ी सरकार को निरन्तर युद्धों में व्यतीत करने पड़े । यद्यपि यह युद्ध न तो भारतवासियों की रक्षा के लिए थे, न उनकी भारत को आवश्यकता थी । वास्तव में ये युद्ध उस शासन पद्धति के अनिवार्य परिणाम थे, जो सन् ३३ के चार्टर एक्ट में क़ायम की गई थी। इन युद्धों से इतना ही नहीं कि भारतीय जीवन का विकास रुक गया, अपितु भारत की सुख शान्ति में भी बेहद बाधा पड़ी। इस बीच अंग्रेज़ी सरकार की कुल आमदनी का आधे से भी अधिक भाग युद्ध और सेना पर खर्च होता रहा । जबकि इस काल में अंग्रेजी सरकार ने सार्वजनिक हित के कामों पर केवल दो प्रतिशत खर्चा किया। इस समय समूचे ब्रिटिश भारत में साधारण प्रजा की अवस्था अत्यन्त दयनीय हो गई थी। किसानों का लगभग सर्वनाश हो गया और पुराने खानदान ग़ारत हो गए। बड़े-बड़े और महंगे क़ानून प्रचलित किए--गए, अदालतों की कार्यवाही पेचीदा कर दी गई और खर्च बढ़ाकर असह्य कर दिए गए। कम्पनी की उस समय की समस्त भारतीय प्रजा के लिए जो न्याय के लिए सरकार को टैक्स नहीं दे सकते थे, अदालतों के दरवाजे बन्द थे। उनके लिए न क़ानून था, न इन्साफ़। उस काल की पुलिस अत्या- २०६
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