उसे एक बार फिर पूना की गद्दी पर बैठा दें तो वह जन्म-जन्मान्तर तक अंग्रेजों का परम मित्र बना रहेगा। परन्तु अंग्रेजों के जनरल ने स्पष्ट कह दिया--कि अब पेशवा को गद्दी की आशा त्याग देनी चाहिए और शीघ्र से शीघ्र अंग्रेजी कैम्प में आकर विना शर्त आत्म समर्पण कर देना चाहिए और बन्दी हो जाना चाहिए । वाजीराव ने और कुछ दिन हाथ- पैर मारे -पर अन्त में उसने अंग्रेज़ी सेना के केम्प में जाकर बन्दी होना स्वीकार कर लिया। और उसने सरजान मालकम को आत्म समर्पण कर दिया । अंग्रेजी सरकार ने उसे कानपुर के निकट विठूर में रहने की आज्ञा दे दी और पाठ लाख रुपया वार्षिक पेंन्शन नियत कर दी। आगे उसने अपने जीवन के तीस वर्ष विठूर ही में काटे । यह विठूर का बन्दी यहाँ कुछ तकलीफ में न था। उसे आठ लाख रुपया वार्षिक पेंनशन मिलती थी—वह ऐश में जीवन व्यतीत करता था । यहाँ यहाँ आने से पूर्व वह छह विवाह कर चुका था, अब यहाँ आने पर उसने पाँच विवाह और किए । रंग रलियों का शौकीन था। उसकी पैंशन में हिस्सा बटाने को बहुत से खुशामदी चरित्र-हीन लोग उसके पास आ जुटे थे और उनकी सोहबत में वह अपने दिन काट रहा था। मराठा शाही का अन्त सिंधिया से राजपूताना छीना जा चुका था। और पेशवा की गद्दी का भी खात्मा हो चुका था। गायकवाड़ अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर चुका था । अब केवल दो मराठा राज्य शेष रह गए थे। भोंसले और होल्कर । इस समय केवल नागपुर शहर हा भोंसलों की अधीनता में था । वहाँ भी विश्वासघातियों और रिश्वतखोरों का बाजार गर्म था। राघो जी भोंसला जब तक रहे, अंग्रेजों की दाल न गली । पर उनके उत्तरा- धिकारी अप्पा जी सब-सीडीयरी संधि के जाल में फंस गए। उन्हें अंग्रेज २०१
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१९७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।