पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१९२

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खिड़की-संग्राम अभी एक पहर दिन शेष था कि गोविन्दराव गोखले घोड़ा फैकता हुआ मराठा सेना के सेनापति अपने पिता बापू गोखले के सम्मुख जा पहुँचा। उसने घोड़े से कूद कर सेनापति का सैनिक अभिवादन किया। और पेशवा की यह आज्ञा सुनादी कि तुरन्त आक्रमण कर दिया जाय, जिससे अंग्रेजों को अंधेरे में भागने का अवसर न मिले । बापू गोखले भी अधीर हो रहा था। उसे पेशवा से ऐसी आज्ञा की आशा न थी। क्योंकि वह पेशवा की कमजोर तबियत को जानता था। अब इस आदेश से वह तन कर खड़ा हो गया। सब मराठे अफसर उसकी आज्ञा सुनने को उसके निकट आ जुटे । गोविंद गोखले ने कहा-बापू, पहला गोला मैं ही सर करना चाहता हूँ। बापू ने तुरन्त उसे मराठा तोपों का अध्यक्ष बना दिया और क्षण भर बाद अकस्मात ही नौ मराठा तोपें गर्ज उठीं। ये तो पूना की दिशा में खिड़ड़ी से दो मील के अन्तर पर जमाई हुई थी और सव बड़ी तोपें थीं। अभी तोपों की पहली बाढ़ दगी ही थी, और अंग्रेजी सेना अपनी स्थिति स्थिर न करने पाई थी—कि मराठा सवारों की टुकडियों ने दाएँ- बाएँ से एक साथ धावा बोल दिया। क्षण भर के लिए अंग्रेजी सेना में अातंक छा गया। परन्तु अंग्रेजों के सौभाग्य से शीघ्रता से धावा करने के कारण मराठों की पंक्ति का भंग हो गया। और वे बिखर गए। इस ममय केवल मराठों की एक सुदृढ़ बैटालियन स्थिर व्यवस्थित थी जो एक पुर्तगीज सेनानी उ-पिटो की कमान में थी। मराठा योद्धा सूर्य की अस्तंगत घूप में अपनी तलवारें चमकाते और हर-हर महादेव का नारा बुलन्द करते दबादब अंग्रेजी सेना को दबोचते बढ़ते जा रहे थे। और अंग्रेजी सेना सावधानी से पीछे हट रही थी। निश्चय ही इस समय उन पर रण-रंग चढ़ा था, और वे जूझ मरने की भावना से ओत-प्रोत थे। १६६