अपनी सेना सुसज्जित होने की आज्ञा दी। ब्रिटिश रेजीमेन्ट के पास बिठोजी नायक को दूत बनाकर यह संदेशा भेजा कि पूना के पास अंग्रेजी सेना का जमाव बढ़ता जा रहा है । यह शंकनीय है, और परस्पर सम- झौते के विरुद्ध भी । इसलिए उचित है कि अंग्रेज बटैलियन की बढ़ी हुई संख्या को कम किया जाय और छावनी का स्थान पेशवा की इच्छानुसार बदल दिया जाय, अन्यथा हमारी दोस्ती समाप्त हो जायगी। इस अल्टीमेटम का जवाब अंग्रेजी रेजीडेन्ट ने दिया कि अंग्रेज़ सरकार छावनी में जी चाहे जितनी सेना रख सकती है, पेशवा को उस पर ऐतराज करने का कोई हक नहीं । "हम लड़ना नहीं चाहते, परन्तु यदि पेशवा की सेनाएँ आगे बढ़ेंगी, तो हम जवाबी आक्रमण करने के लिए मजबूर होंगे।" यह खुली युद्ध घोषणा थी। और इस पर बापू गोखले ने घुड़सवारों का एक बड़ा दल ले कर अंग्रेजों की छावनी पर आक्रमण कर दिया। यह देख कर अंग्रेज़ रेज़ोडेन्ट छावनी छोड़ कर पीछे हट गया, और मराठों ने अंग्रेजों की छावनी में आग लगा दी। अब खिड़की के मैदान में अंग्रेजों की सेना और मराठे आमने-सामने खड़े थे। पेशवा की सेना में बापू गोखले की कमान में १८,००० घुड़सवार, इतने ही पैदल और चौदह तोपें थीं। अंग्रेजों की सेना में पाँच हजार हिन्दुस्तानी सिपाही और एक हजार यूरोपियन सिपाही थे। अब मराठा राज्य के भाग्य का फैसला इसी क्षेत्र में होने वाला था।
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पार्वती शिखर पर संगम के पास से पूना नगर पर दृष्टि डालने वाले को इस सुन्दर प्रदेश में सब से आकर्षक पार्वती पर्वत शिखर प्रतीत होगा-जहाँ एक मन्दिर पार्वती का बना हुआ है। सम्भवतः पार्वती के इस प्राचीन मन्दिर