पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१८३

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वाजीराव प्रथम ही के काल में मराठा संघ बिखरने लगा था । पहले पेशवा के घर में फूट पड़ी, फिर वह धीरे-धीरे सावन्तों में फैल गई। मराठा संघ के चारों स्तम्भ सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ और भसला लगभग स्वतन्त्र शासक बनकर पेशवा का शिकार करने के लिए आपस में लड़ते रहे। इस गृह-फूट का यह परिणाम हुअा कि संघ के सभी सदस्य एक-एक करके अंग्रेजों के चंगुल में फंस गए और अपनी शक्ति और स्वतन्त्रता खो बैठे। दुर्भाग्य से पेशवा बाजीराव मराठा संघ की सबसे दुर्बल कड़ी थी, जिसके कारण वह महाराष्ट्र शक्ति के लिए एक अभिशाप बन गया। वह प्राकृति, भव्य में बातचीत में शिष्ट, पूजा-पाठ में श्रद्धावान् और संस्कृत का पंडित था । वह तलवार का धनी भी था, और पक्का शह सवार भी। परन्तु वह वीर न था न उसमें संकल्प की दृढ़ता थी, न इतना साहस कि विपरीत परिस्थितियों में अपने अधिकार में आ रहे । उसकी अधिकार- लिप्सा बहुत बढ़ी हुई थी, वह स्वयं किसी का विश्वास नहीं करता था । और न उसका विश्वास किया जा सकता था। वह बिना सोचे-समझे वायदे कर लेता था और साधारण कारणों से भी वह अत्यन्त नृशंस क्रूर हो बैठता था। बसीन की सन्धि उसकी अयोग्यता और कायरता, का जीता जागता प्रमाण था। बसीन की सन्धि में उसने यह स्वीकार कर लिया था कि कम्पना की कुछ पैदल और घुड़सवार सेना, तोपखाने के साथ पूना के निकट स्थायी रूप से रहेगी। जिसका कुल खर्चा पेशवा देगा। पेशवा ने इसके खर्चे के लिए सूरत का समृद्ध नगर अंग्रेजों के हवाले कर दिया था। उसने निजाम और गायकवाड़पर से अपना स्वामित्व हटा लिया था और अन्य यूरोपियन जातियों व राज्यों से भी सम्बन्ध विच्छेद कर लिया था । और सब महत्वपूर्ण मामलों में अंग्रेज़ी सरकार को मध्यस्थ निर्णायक स्वीकार कर लिया था। इस प्रकार बसीन सन्धि, सन्धि न थी, एक प्रकार का प्रात्म-समर्पण था, जिसने मराठा राज्य संघ को निष्प्राण कर दिया .१८७