मर्वदा पार कर बरार और खानदेश के इलाके पर कब्जा कर सके । और आवश्यकतानुसार काम आ सके । गुजरात से एक डिवीज़न सेना दोहद के रास्ते-मालवे में प्रवेश करने के लिए नियुक्त की गई। इस से प्रथम इतनी विशाल सैनिक तैयरियाँ अंग्रेजों ने कभी नहीं की थीं, बाजाप्ता इस विशाल सेना के अतिरिक्त तेईस हज़ार अस्थायी सवार थे जिन में तेरह हज़ार दखन की सेना के साथ थे और दस हजार बंगाल की सेना के साथ । इस भारी सैन्य का उद्देश्य समस्त मराठा मण्डल की रियासतों के स्वाधीन अस्तित्व को सदा के लिए उखाड़ फेंकना था। बस, अब एक चिनगारी गिरने की देर थी। .
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अंग्रेजी-कूटनीति का जाल अब अंग्रेज भारत के एक बहुत बड़े भाग को अधिकृत कर चुके थे । अधिकार का जो अंश शेष था, उसकी पूर्ति में रुकावट करने वाली शक्तियां अब मानो नष्ट हो चुकी थीं या इतनी कमजोर हो गई थीं, कि उन्हें शत्रु की श्रेणी में गिना ही नहीं जा सकता था । राजनीतिक दृष्टि से मुग़ल बादशाह एकदम गया बीता हो चुका था। उत्तर दिशा से आने वाले संकटों को लार्ड मिन्टो ने पंजाब-सिन्ध और ईरान से संधि करके रोक दिया था। दो वर्ष लोहा चला कर नेपाल को भी अनुगत बना लिया गया था । अब तो अंग्रेजों के सामने एक ही दीवार खड़ी रह गई थी, वह थी मराठों की संघ शक्ति । जो चोट पर चोट खाकर जर्जर तो हो चुकी थी पर ढही न थी। अंग्रेज अब उसे एक दम ढहा देने पर तुले हुए इस लिए अब अंग्रेज़ मराठा संघ का सर्वनाश करके एकदम भारत के स्वामी होने को उतावले हो रहे थे। .१२६