में एकत्र होती जा रही थीं, और जब से पेशवा पूना में लौट कर आया था, पूना की समृद्धि बढ़ाने के लिए उसने पूना के आस-पास के प्रदेश के सब प्रकार के टैक्स माफ़ कर दिए थे। उसने कोतवाल का पद तक उड़ा दिया था, और इस बात की कड़ी नज़र रखी थी कि कोई राज कर्मचारी प्रजा के साथ जबर्दस्ती न करे। यद्यपि हाल ही में पूना में अंग्रेज़ तबाही ला चुके थे, लूट और अकाल से भी पूना बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका था, परन्तु इस समय पूना शहर निहायत खुशहाल दिखाई दे रहा था। तमाम मुख्य-मुख्य गलियों और बाजारों में इस तरह के लोग भरे हुए थे, जिनकी पोशाक और सूरतों से प्रतीत होता था कि जितना आराम-सुख और व्यापार या दस्तकारियाँ वहाँ थीं, उतनी यूरोप के किसी शहर में भी न थीं। चारों ओर खुशहाली और सम्पन्नता का दृश्य दिखाई देता था। इस समय तमाम मराठा साम्राज्य की सीमाओं को घेर कर एक लाख तीस हजार अंग्रेज सेना सन्नद्ध हो रही थी। स्पष्ट था कि यह विशाल तैयारी केवल पिण्डारियों के दमन के लिए न थी। यदि आप तत्कालीन भारत के नक्शे की ओर ध्यान दें, तो आप देखेंगे कि कृष्णा नदी और गंगा नदी के बीच बहुत बड़ा लम्बा-चौड़ा भू- ‘भाग है। इसके बाद दक्षिण-पश्चिम में पूना से लेकर उत्तर-पूर्व में कान- पुर तक का विशाल भूखण्ड है। अब आप इन दोनों विशाल भूखण्डों तथा- इनके बीच की देशी रियासतों पर दृष्टि डालिए। और तब यह समझिए कि अंग्रेज़ों की चमू जो तीनों बड़े-बड़े प्रान्तों से चुनी गई थी- तथा जो उत्तर भारत और दक्षिण पथ को घेरती हुई-पिण्डारी जत्थों और देशी रियासतों, को अपने में समेटती हुई, इस विस्तृत भू-भाग के ऊपर फैलती जा रही थी। हक़ीक़त तो यह थी-मानो एक जबदस्त शिकारी इस समय भारत के राजा-महाराजाओं-का एक जबर्दस्त शिकार करता जा रहा था । वास्तव में बहुत दिनों तक विश्राम कर लेने के बाद अब अपनी समस्त विशाल सैनिक शक्तियों को लगा कर अंग्रेज १.८४
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