थी। उन्हीं के कौशल से ये मराठा दरबार से निराश्रय हुए थे। उन्होंने गुप्त रीति पर उनकी सेवाओं का उपयोग करना प्रारम्भ किया- और उन्हें धन का लालच और बड़ी-बड़ी रकमें देकर उनके द्वारा जयपुर आदि राजपूत रियासतों को, और बाद में मराठा रियासतों में भी लूट- मार करने को आमादा कर लिया । देखते-देखते ही पिण्डारियों का आतंक सारे राजस्थान और मध्यभारत में छा गया। अब वे स्वेच्छा से ही दल बना कर गांवों को लूटने और वहाँ से लोगों को पकड़ ले जाने लगे- जिन्हें वे बड़ी-बड़ी रकमें लेकर छोड़ते थे। धीरे-धीरे पिण्डारियों के ये जत्थे अंग्रेजों की शक्ति के बाहर होने लगे । और एक बार मेजर फ्रेजर ने उनके एक जत्थे पर आक्रमण भी कर दिया, जिससे क्रुद्ध होकर पिंडारियों ने कृष्णा नदी के किनारे-किनारे समस्त अंग्रेजी इलाकों में अंधेरगर्दी मचा दी। इस समय तक भी कम्पनी के इलाकों के अधिवासियों की अपेक्षा देशी राज्यों के अधिवासी अधिक सम्पन्न और खुशहाल थे। चोरी और डकैती के लिए भी वहाँ कठोर दण्ड दिया जाता था। परन्तु अंग्रेजी अमलदारी में डाकुओं को दण्ड देना अथवा उनसे प्रजा की रक्षा करना अंग्रेज शासकों की नीति के ही विरुद्ध था। भारतीय प्रजा इस तरह की आपत्तियों में फंसी रह कर पूर्णत: निरीह और निराश्रय बन जाय, इसी में अंग्रेजों को अपनी कुशल दीख रही थी। प्रजा की जानमाल की रक्षा करने की उन्हें कुछ आवश्यकता न थी। उनके लिए आवश्यक था कि वे प्रजा को दबाए रखें, जिससे वह उनके विरुद्ध विद्रोह न कर सके। प्रजा को लगातार आपत्तियों में फंसाए रखना और उसे खुशहाल और निश्चिन्त न होने देना, उस समय अंग्रेजों की शासन नीति थी। लार्ड कार्नवालिस ने जो शासन सुधार किए थे, उनका मुख्य उद्देश्य भी भारतीय प्रजा में निरन्तर आपसी झगड़े कायम रखना ही था। और यही उन सुधारों का परिणाम हुआ भी। इस समय अंग्रेज कर्मचारी कारीगरों और व्यापारियों से मनमाने ढंग पर माल खरीदने और माल तैयार १८२
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